अभिप्रेरक (मोटिवेशनल)

चिंता किस बात की? आने वाला पल तो जाने वाला है…

सभी फोटो : साभार गूगल

मनस्वी अपर्णा II

मेरी समझ से जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि अगर कोई है, तो वह है जीवन की क्षण भंगुरता को पहचान पाना… पल भर में बीत जाने वाले पल को जी लेने की क्षमता…, लेकिन होता ये है कि हमारी कंडिशनिंग कुछ ऐसी हुई है कि भविष्य को ध्यान में रख कर जीना हमारी आदत बन जाती है। हमारे विचार का ढंग हो जाता है भविष्य को परिकल्पित करने का, भविष्य की योजनाएं बनाने का। हमने ऐसा ही करना सीखा है और इस सबमें जो हमने खोया है, वह है वर्तमान की कीमत जानना… पता नहीं कैसे हम वर्तमान को अनदेखा करने में पारंगत हो गए हैं।

हमारे आसपास माहौल भी कुछ ऐसा ही है कि कोई भी हमें आज में, अभी में जीने ही नहीं देता, आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि किसी की भी कोई खास रुचि हमारे आज में होती ही नहीं। खुद हमारी भी नहीं। बच्चों से हम उनको कुछ भी समझने से पहले ही ये पूछना शुरू कर देते हैं कि वे बड़े होकर क्या बनना चाहेंगे? किसी भी व्यक्ति से आप बात कीजिए वो गाहे-बगाहे अपने भविष्य की योजनाओं पर चर्चा करता मिलेगा। सारे प्रेरक वक्ता आपको भविष्य के बाबत बेहतर योजनाओं के गुर सिखाते मिलेंगे और तो और आपको लोग मूर्ख और निकम्मा समझते हैं यदि आपके पास भविष्य की कोई योजना नहीं है तो। यदि आपने भविष्य के लिए कुछ अतिरिक्त धन इकट्ठा नहीं किया हो तो, या आपके पास भविष्य को सुरक्षित करने का कोई शानदार एजंडा नहीं हो तो।

मुझसे भी लोग अक्सर पूछते हैं कि आपके लक्ष्य क्या है…? आपकी कोई किताब कब आएगी? आप क्यों लिखती हैं? गजल क्यों कहती हैं… आप भविष्य में अपने आप को कहां देखती है? मुझे आज तक समझ नहीं आया कि लिखना मात्र कोई उद्देश्य क्यों नहीं हो सकता? दूसरी बात जो भी मैं लिख रही हूं किताब की शक्ल में किसी बड़ी हस्ती के हाथों विमोचित होकर आएगा तो ही सार्थक होगा क्या या उसका अर्थ ज्यादा प्रामाणिक होगा… विचार तो मेरे ही होंगे चाहे मैं अपनी फेसबुक वॉल पर लिखूं या किसी पत्र पत्रिका में।

नहीं! हम जो सबसे बड़ी भूल करना सीख गए हैं,  वह है वर्तमान को अनदेखा करना। जीवन सिर्फ उस वर्तमान के क्षण में होता हैं जो पलक झपकते ही अतीत बन जाता है, हम उस जीवंतता को अनदेखा करके किसी और पल के बाबत ख्वाब बुनने लगते हैं जो वास्तव में हमारे हाथ में होता ही नहीं, क्योंकि हो नहीं सकता।

हमारे आसपास माहौल भी कुछ ऐसा ही है कि कोई भी हमें आज में, अभी में जीने ही नहीं देता, आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि किसी की भी कोई खास रुचि हमारे आज में होती ही नहीं। खुद हमारी भी नहीं। बच्चों से हम उनको कुछ भी समझने से पहले ही ये पूछना शुरू कर देते हैं कि वे बड़े होकर क्या बनना चाहेंगे? किसी भी व्यक्ति से आप बात कीजिए वो गाहे-बगाहे अपने भविष्य की योजनाओं पर चर्चा करता मिलेगा।

मैं यह कतई नहीं कहना चाहती हूं कि भविष्य की अनदेखी करना चाहिए या आपात स्थिति के लिए कोई तैयारी नहीं रखनी चाहिए या आंखों में कोई सपने नहीं होने चाहिए या जीवन को बेतरतीब ढंग से जीना चाहिए। नहीं इन सबका अपना महत्व है और ये सब होना भी चाहिए, लेकिन ये जो हमारा ढंग हो गया है सोचने का भविष्योन्मुख, उसे जरा  सुधारने की जरूरत है। आंखें हमेशा ऊपर ही देखती रहेंगी तो आसपास की, अगल-बगल की दुनिया अनजाने में ही नजरअंदाज हो जाएगी जो बिल्कुल सच है, सामने है और जीवंत है। कोई भी क्षण हो दुख या सुख का आया नहीं कि जाना शुरू हो जाता है और कोई अगर ठीक ठीक समझने की कोशिश करे तो बड़ी आसानी से ये कीमिया समझ आ सकती है।

दरअसल, जब भी हम कोई फार्मूला बनाते हैं भविष्य के बाबत तो उसकी कामयाबी की संभावना अधिकतम होती है क्योंकि हम मोटा-माटी वैसा देखते आए हैं। अगर कोई व्यक्ति अपने को 70 साल के फॉर्मेट में रख कर अपना जीवन निर्णित करता है तो मोटे तौर पर उसके ठीक ठीक वैसे ही बीतने की 90 फीसद संभावना होती है। इसलिए भी भविष्य की योजना बनाने वाला हमारा ढंग कारगर साबित होता दिखाई पड़ता है। बावजूद इसके कि सच में हम नहीं जानते अगले पल, अगले दिन, अगले महीने या अगले साल क्या होने वाला है।

आध्यात्म कहता है कि हम क्षण में जीना या वर्तमान में होना जान जाएं, तो हम उस दिशा में जा सकते हैं जिसे ध्यान या समाधि कहा जाता है। हम इतनी गहराई में न भी जाएं फिर भी अपने आज में पूरी तरह से मौजूद होकर उस खुशी को जी सकते हैं जिसके बीत जाने पर हम उसकी यादों में खोए रहते हैं।

About the author

मनस्वी अपर्णा

मनस्वी अपर्णा ने हिंदी गजल लेखन में हाल के बरसों में अपनी एक खास पहचान बनाई है। वे अपनी रचनाओं से गंभीर बातें भी बड़ी सहजता से कह देती हैं। उनकी शायरी में रूमानियत चांदनी की तरह मन के दरीचे पर उतर आती है। चांद की रोशनी में नहाई उनकी ग़ज़लें नीली स्याही में डुबकी ल्गाती है और कलम का मुंह चूम लेती हैं। वे क्या खूब लिखती हैं-
जैसे कि गुमशुदा मेरा आराम हो गया
ये जिस्म हाय दर्द का गोदाम हो गया..

Leave a Comment

error: Content is protected !!