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परदेस में हिंदी का परचम बनीं गीतांजलि श्री

फोटो: साभार गूगल

 अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। लेखिका गीतांजलि श्री इन दिनों चर्चा में हैं। आखिर क्यों न हों। इस बार बुकर पुरस्कार के लिए नामित होने वालों की सूची में उनके उपन्यास ‘टूंब आफ सैंड’ को शामिल जो किया गया है। यह पहली बार है कि किसी हिंदी रचना को इस सूची में जगह मिली है। बुकर पुरस्कार साहित्य जगत का प्रतिष्ठित पुरस्कार है। हर साल इस पुरस्कार के लिए नामित होने वाले लेखकों की सूची जारी की जाती है। वर्ष 2022 के लिए चुने हुए लेखकों की घोषणा सात अप्रैल को लंदन बुक फेयर में और इसके बाद विजेता की घोषणा 26 मई को लंदन में एक विशेष आयोजन में की जाएगी।

वैसे यह पहली बार नहीं है जब गीतांजलि श्री की अनुवादित रचना को वैश्विक मंच पर सराहा गया है। उनके उपन्यास ‘माई’ का अंग्रेजी अनुवाद ‘क्रॉसवर्ड अवार्ड’ के लिए नामित किया गया था और पुरस्कार की दौड़ में शामिल अंतिम चार किताबों में यह था। उनकी एक और रचना ‘खाली जगह’ का अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन में भी हो चुका है। गीतांजलि श्री के मिले पुरस्कारों की बात करें तो हिंदी अकादमी उन्हें 2000-2001 का साहित्यकार सम्मान प्रदान कर चुकी है। इसी तरह 1994 में उन्हें उनके कहानी संग्रह अनुगूंज के लिए यूके कथा सम्मान मिल चुका है। इसके अलावा वे इंदु शर्मा कथा सम्मान, द्विजदेव सम्मान के अलावा भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से भी सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं।

 गौरतलब है कि गीतांजलि श्री का अनुवादित हिंदी उपन्यास टुंब आॅफ सैंड बुकर पुरस्कार के लिए सूचीबद्ध 13 पुस्तकों में से एक है। उनके मूल उपन्यास का नाम रेत समाधि है। इसका डेजी रॉकवेल ने अंग्रेजी में अनुवाद किया है। इसमें एक बुजुर्ग महिला की कहानी है जो अपने पति की मृत्यु के बाद काफी उदास रहती है। आखिरकार, वह अपने अवसाद पर काबू पाती है और बंटवारे के दौरान के अतीत की कड़ियों को जोड़ने के लिए पाकिस्तान जाने का वह निर्णय करती है।

गीतांजलि श्री का अनुवादित हिंदी उपन्यास टुंब आॅफ सैंड बुकर पुरस्कार के लिए सूचीबद्ध 13 पुस्तकों में से एक है। उनके मूल उपन्यास का नाम रेत समाधि है। इसका डेजी रॉकवेल ने अंग्रेजी में अनुवाद किया है। इसमें एक बुजुर्ग महिला की कहानी है जो अपने पति की मृत्यु के बाद काफी उदास रहती है। आखिरकार, वह अपने अवसाद पर काबू पाती है और बंटवारे के दौरान के अतीत की कड़ियों को जोड़ने के लिए पाकिस्तान जाने का वह निर्णय करती है।

फोटो: साभार गूगल

गीतांजलि श्री ने बेहद संवेदनशीलना से यह कहानी रची है ओर एक महिला के मन को मार्मिकता से और बेहद सहजता से प्रस्तुत किया है। वहीं डेजी ने श्री के हिंदी उपन्यास ‘रेत समाधि’ का अनुवाद करते हुए कहानी की आत्मा को बरकरार रखा। बता दें कि बुकर पुरस्कार के निर्णायक मंडल ने गीतांजलि श्री की रचना का चयन करने की जो वजह बताई है, वह यह कि लेखिका का भाषा प्रवाह सहज ही 80 साल की महिला और उसके अतीत की ओर ले जाता है।

लेखिका गीतांजलि श्री का जन्म 12 जून 1957 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ। उनकी शुरुआती शिक्षा उत्तर प्रदेश के शहरों में हुई। आगे चल कर उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कालेज से पढ़ाई की। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातकोत्तर किया। उन्होंने प्रेमचंद और उत्तर भारत के औपनिवेशिक शिक्षित वर्ग विषय पर शोध भी किया। कुछ दिनों तक जामिया में पढ़ाने के बाद उन्होंने सूरत के सेंटर फॉर सोशल स्टडीज में पोस्ट-डॉक्टरल रिसर्च की और वहीं रहते हुए उन्होंने साहित्य सृजन किया। साल 1987 में गीतांजलि श्री की कहानी बेलपत्र हंस में प्रकाशित हुई थी। उसके बाद उनकी दो और कहानियां हंस में प्रकाशित हुईं और उसके बाद यह सिलसिला चल निकला।

 गीतांजलि श्री हिंदी साहित्य की सशक्त हस्ताक्षर हैं। उन्होंने अपनी साहित्यिक कृतियों से पिछले साढ़े तीन दशक में अपनी खास पहचान बनाई है। वे अपने शिल्प और बिम्बों से अद्भुत कथा संसार रचती हैं। इतिहास की इस विद्यार्थी ने शिक्षा के क्रम में देर से लिखना शुरू किया। मगर जब शुरू किया तो श्री ने कमाल का लिखा। और फिर तो लिखती ही चली गईं। और आज भी लिख रही हैं। उन्हें शुभकामनाएं।  (एजंसी इनपुट)

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Ashrut Purva

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