अमनदीप ‘विम्मी’ II
एक दिन मैं खुद को खत लिखूंगी
ज़माने भर के नकारा
सिद्ध करने के बावजूद
जताऊंगी खुद पर भरोसा…
मजबूती से रखूंगी कदम
दरवाज़ों की सरहदों के पार
गढूंगी एक नया आकाश…
यह जतलाए जाने के बावजूद
कि चेहरा थोड़ा सा गोल
गर्दन सुराहीदार
होंठों को गुलाबी और नरम
आंखों को थोड़ा और बड़ा, और गहरा
रंग ज़रा सा और साफ होना चाहिए था
बताऊंगी स्वयं को
कि कितनी सुंदर हूं मैं…
फटी बिवाइयों और
रिसते ज़ख्मों को ढाल बना
दूंगी हौसला चलने का खुद को…
जी उठूंगी फिर से
फीनिक्स बन
एक दिन बताऊंगी दुनिया को
अपनी राख से बार बार
पैदा हो सकती हूं मैं…!!
फोटो- साभार गूगल