अभिप्रेरक (मोटिवेशनल)

आपकी निडरता से डर को भी लगता है डर

नीता अनामिका II

चट्टानों के आस-पास
फूल उन्हें खिलना सिखाते रहे
चट्टानें डरती रहीं
उन्हें दिखता रहा फूलों का मुरझाना।
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जी हां, हम जैसा महसूस करना चाहेंगे, जीवन में सब कुछ हमें वैसा ही दिखेगा। प्रसिद्ध कवि नरेश सक्सेना जी की ये पंक्तियां जीवन के गूढ़ रहस्य को व्यक्त करती हैं। दरअसल, डर या भय आदिम मानवीय मनोवृत्ति है जो आशंका या अनिष्ट की संभावना से उत्पन्न होने वाला एक भाव है। डर हम सब एक समय पर महसूस करते हैं। बच्चों के रूप में सबसे पहले अनुभव किया जाता है।

सत्ता के लिए डर एक कारोबार है, तो आम अस्तित्व के लिए यह उत्तरजीविता या संभावित खतरे के लिए एक सहज प्रतिक्रिया। डर के कई प्रकार होते है। अंधविश्वासी डर काल्पनिक चीजों का एक भय है। जैसे भूत-प्रेत, जादू-टोना या बिल्ली का रास्ता काटना। बुद्घिमान डर में बड़े हो जाने पर जब अधिक ज्ञान लाभ करते है तब भी डर हमारे अंदर छिपा रहता है। अनिश्चितता का डर एक ऐसी स्थिति है जिसमें अधूरी या अपरिचित जानकारी जुड़ी होती है।

हकीकत में हम ज्यादातर ऐसे डर से आतंकित रहते हैं जो हकीकत में होते ही नहीं हैं। क्या आप जानते हैं कि डर कहीं और नहीं बस हमारे मन में होता है। लेकिन यह भी जानना जरुरी है कि डर जीवन का हिस्सा भी है। अच्छी बात यह कि कभी-कभी इसी डर की वजह से हम अपना सबसे अच्छा काम कर जाते हैं। डर सबसे बुरे भावनात्मक घटकों में से एक भावना है जो हमारे नियत्रंण से बाहर होता है। डर के निदान के लिए मुख्य मानदंडों में से एक यह है कि आपको जानना होगा कि आपका भय क्या है?

यदि आपके अंदर किसी बात का डर हो तो आप ही उस डर को दूर कर सकते हैं। कई लोगों के मन में बचपन का डर इस कदर बैठ जाता है कि वो पूरी उम्र डरते रहते हैं। किसी को इंटरव्यू देने जाना है तो किसी को  परीक्षा देने तो किसी को कुछ नया करने का अवसर, तो कुछ को अपना हुनर दिखाने का मौका।

  • हार-जीत की चिंता नहीं करिए क्योंकि हार से भी अनुभव और ज्ञान प्राप्त होता है। अगर आप चुनौतियों से डर जाएंगे तो आगे कभी नहीं बढ़ पाएंगे। इसलिए जिंदगी में आने वाली हर चुनौती को स्वीकार करें और उससे आगे बढ़ें।
फोटो- साभार गूगल

लेकिन जब मन में डर हावी हो जाए कि क्या होगा? बस यही डर हमें जीवन में मिले अवसर का लाभ नहीं उठाने देता है। डर की वजह से इंसान चाह कर भी किसी भी बात का कोई निर्णय नहीं कर पाता है। दूसरे शब्दों में, एक विशिष्ट भय आपकी शिक्षा, आपके करियर और जीवन की समग्र गुणवत्ता को काफी हद तक खराब कर सकता है।

असहायता तब प्रकट होती है जब आपको पता चलता है कि आपके डर ने आपके जीवन के कई या यह कह सकते हैं कि आपके जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित कर दिया है, जैसे आपकी नौकरी, सामाजिक जीवन या सामान्य खुशी। डर को भागने और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए वही काम करिए जिससे आपको सबसे ज्यादा डर लगता हैं। एक बात याद रखिए आत्मविश्वास पर डर कभी हावी नहीं हो सकता।

किसी ने  खूब कहा है-
डर मुझे भी लगा फासला देख कर,
पर मैं बढ़ता गया रास्ता देख कर,
खुद-ब-खुद मेरे नजदीक आती गई
मेरी मंजिल मेरा हौसला देख कर।

संतुलित डर होना लाभदायक होता है, परंतु अधिक डरना कमजोरी और अज्ञानता का परिचायक है। जो आज तक हो रहा है वही आप भी कर रहे है, अच्छी बात है, लेकिन आपने कुछ नया करने की कोशिश नहीं की ऐसा आपके मन में डर के कारण है। तो इस डर को बाहर निकाल फेंकें। क्योंकि डर के आगे जीत है यह हम सभी सुनते आ रहे हैं। एक बात याद रखें निडरता से डर को भी डर लगता है।

इंसान को सबसे ज्यादा डर खुद से लगता है कि कहीं वो खुद से न हार जाए। ऐसा ही कुछ हमारी जिंदगी में भी होता है। हमारी और आपकी जिंदगी में भी ऐसी कई बाधाएं आती हैं, जिनसे या तो हम हार जाते हैं या फिर लड़ कर जीत जाते हैं। और जो लड़ कर जीत जाता है वही सफलता को हासिल कर पाता है। 

अब ये आपको तय करना है कि जिंदगी में आने वाली मुसीबतों से डरना है या फिर उन पर विजय हासिल करनी है। हौसले बुलंद रख हंसें, मुस्कुराएं… जिंदगी अपनी बांहें फैलाए आपका इंतजार कर रही है।

About the author

नीता अनामिका

नीता अनामिका कोलकाता के साहित्यिक समाज में जाना मान नाम हैं। वे लेखिका हैं, कवयित्री हैं। समाज सेविका भी हैं। वे साहित्यिक संस्था 'शब्दाक्षर' की राष्ट्रीय महामंत्री हैं। नीता सामाजिक संस्था 'वाराही एक प्रयास' की संस्थापक और अध्यक्ष हैं। वे अक्सर सामाजिक समस्याओं पर कविताएं और कहानियां लिखती हैं। उनकी ज्यादातर रचनाएं साहित्यिक पत्रिकाओं और प्रतिष्ठित समाचारपत्रों और ई-पत्रिकाओं में छपती रही हैं।

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