कविता काव्य कौमुदी

संडे जल्दी से आ जाओ, पापा से पूरे दिन मिलाओ

राकेश धर द्विवेदी II

मैं एक छोटा बच्चा हूं
मेरे प्यारे पापा हैं
मेरी प्यारी मम्मा हैं
जब मैं आंखें खोलता हूं
पापा को घर में नहीं पाता हूं
मम्मी धीरे से समझाती,
पापा आॅफिस चले गए।
जब तक मैं जगता हूं
पापा वापस घर नहीं आते हैं
मेरे सो जाने पर पापा थके-मांदे आ जाते हैं
फिर धीरे से पप्पी ले सोने चले जाते हैं
न वो पिज्जा हट ले जाते हैं न वो बर्गर खिलाते हैं
वीडियो गेम की कौन कहे
घुम्मी भी नहीं ले जाते हैं
मैं मम्मा से पूछता हूं पापा कब मेरे संग खेलेंगे
मम्मा धीरे से समझाती
वो तो संडे को मिल पाएंगे
मैं धीरे से कहता हूं ये पापा संडे वाले हैं
संडे जल्दी से आ जाओ
पापा से पूरे दिन मिलाओ
पिज्जा हट और मैकडोनल में
पूरे दिन पापा के साथ बिताओ।

फोटो- साभार गूगल

पिता की याद
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याद आती है
जब मैं मां के गर्भ में था
तुम्हारा मां के पेट से कान लगा कर
मेरी बातों को सुनना

याद आता है
जब मैं छह माह का था
मध्यरात्रि में मेरा नन्हे
हाथों से बाल खींच कर तुम्हें उठाना
घंटों तुम्हारे साथ खेलना
और थक कर सो जाना

याद आता है
नामी स्कूल में एडमिशन की पंक्ति
में तुम्हारा फॉर्म के लिए घंटों खड़े रहना
मेरा व्यक्तित्व परीक्षण में फेल हो जाना
तुम्हारा व्यक्तित्व परीक्षण होना और
तुम्हारी ढेरों मिन्नतों के बाद
स्कूल में मेरा दाखिला होना

याद आता है
अनेक परीक्षाओं में मेरा
अनुत्तीर्ण होना
रोना और कमरा बंद कर
सो जाना
तुम्हारा धीरे से आना
उठाना, खाना खिलाना
और पुन: धीरे से निकल जाना

याद आता है
बैंक से लोन लेकर
मुझे महंगे इंजीनियरिंग
कॉलेज में एडमिशन दिलाना
अपने पुराने स्कूटर पर
ढेरों किक मारना
लेकिन मुझे
नामी कंपनी का लैपटॉप दिलाना

याद आता है
मेरा स्वदेश में
नौकरी न पाना
विदेश जाकर नौकरी करना
मोबाइल पर घंटों तुमसे बात करना
और तुम्हारी स्मृतियों में खो जाना

याद आता है
तुम्हारे स्मृति-शेष रहने की खबर सुनना
तुम्हारी अंतिम यात्रा में
छुट्टी न मिल पाने के कारण
शरीक न हो पाना
तुम्हें याद कर घंटों रोना
और सिरहाने रखी तकिया का भीग जाना

याद आता है
घर की एक दीवार पर
तस्वीर के रूप में तुम्हारा टिक जाना
मेरा लगातार तुम्हें देखना
आंसुओं को पोंछ देना
और ईश्वर से प्रार्थना करना
कि अगले जन्म में तुम्हें
पुन: मेरा पिता बनाना…

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ashrutpurva

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