मनस्वी अपर्णा II
२१२२ १२१२ ११२/२२
खुद की लौ में यूं झिलमिलाना है
अपने भीतर दिया जलाना है //१//
चांद के साथ सब सितारे और
आसमां को जमीं पे लाना है //२//
तीरगी को उधर हटा भी दो
रौशनी को इधर बुलाना है //३//
थाम कर हाथ इन उजालों का
कल के सायों अब भुलाना है //४//
अपनी आंखों में भर के उम्मीदें
आसमां से नजर मिलाना है //५//
जल के बुझ जाएं वो चिराग नहीं
चांदनी घर में अब खिलाना है //६//
नूर से अपने आप रौशन हूं
सिर्फ खुद को यकीं दिलाना है //७//