लिली मित्रा II
अश्रुतपूर्वा की आयोजन श्रृंखला ‘परिसंवाद’ में साॅनेटियर अनिमादास जी के साथ उनके मौलिक साॅनेट संग्रह ‘शिशिर के शतदल’ के परिपेक्ष्य में साॅनेट विधा के विशिष्ट तत्वों पर चर्चा हुई। अनिमा जी किशोरा वय से ओड़िया साॅनेटियर को पढ़ती आ रहीं हैं। मायाधर मानसिंह जी के साॅनेट एवं पाश्चात्य साॅनेट को भी तन्मयता से पढ़ा। अनिमा जी ने 1800 से लेकर 2020 पर्यन्त ओड़िआ साॅनेट इतिहास पर विस्तृत आलेख ‘प्राची से प्रतीची पर्यन्त’ संग्रह में लिखा है ।
समय के स्रोत संग बहते हुए अपने उत्तरदायित्वों का वहन करते हुए जब वे 2012 में फेसबुक पटल पर ओड़िआ सॉनेटियर सत्य पट्टनायक जी एवं विष्णु साहू जी से जुड़ीं तब कुहासे से आच्छादित उनका साॅनेट के प्रति जुड़ाव सूर्य के उजाले में आना प्रारम्भ हो गया। साॅनेट पर हुई निरन्तर चर्चाओं के साथ-साथ ओड़िआ के प्रतिष्ठित साॅनेट हस्ताक्षर बिभुदत्त मिश्र, सच्चि राउतराय, मायाधर मानसिंह ,गिरिजा बलियार सिंह ,वीणापाणि पंडा आदि को पढ़ा।
और 2016 में हिन्दी में अपना पहला साॅनेट ‘बारिश के फूल’ लिखा एवं 2018 में सॉनेटियर तथा ग़ज़लकार श्री विनीत मोहन औदिच्य जी के मार्गदर्शन में प्रकाशन भी शुरू हुआ एवं सॉनेट की यात्रा का प्रारम्भ हुआ।
साॅनेट की विशिष्टताओं पर बताते हुए अनिमा जी ने कहा यह एक रहस्यमयी प्रेमकाव्य विधा है। इसमें 14 पंक्तियों सह विभिन्न ‘राइमिंग स्कीम’ के साथ रहस्यवाद का संवहन होना परम आवश्यक है। विधा के तीनों गुणों 1-कृति धर्म 2- गुण धर्म 3- रहस्य धर्म आधार स्तम्भ हैं। भाषा शैली की शुद्धता अनिवार्य है जिससे इसकी प्रांजलता अक्षुण्य रहे।
साॅनेट की चौदह पंक्तियों में क्रमशः विषय का चिन्तन, प्रलम्बन के साथ विकसित होते हुए उपसंहार को प्राप्त होता है। अंतिम दो पंक्तिया ही उपसंहार होती हैं। जो कि साॅनेट का निचोड़ या सत्व होता है। सरसरी दृष्टि या सीधी सपाट तरीके से साॅनेट ना तो लिखा जाना चाहिए ना ही समझा जाना चाहिए। दृष्टि में गहनता ही साॅनेट के गूढ रहस्य को भेद सकती है। अपनी बात को सउदाहरण समझाते हुए उन्होने मायाधर मानसिंह जी द्वारा रचयित साॅनेट ‘प्रेम स्पर्श’, गिरिजा बलियार सिंह जी के ‘महानदी’ साॅनेट की व्याख्या की।
अनिमा जी द्वारा लिखित साॅनेट की परिचयात्मक शैली के बारे में पूछने पर बताया कि- लेखनी से रचे गए साॅनेट्स में प्रेम,व्यथा,शून्यता,मृत्यु के भाव मुखरित होते हैं। प्रकृति उनकी प्रथम प्रेरणा है जो स्वाभाविक रूप से उत्कृष्ट एवं चमत्कारिक बिम्ब, रूपकल्प लिए अंलकृत होती है।
‘मृत्यु कलिका’ उनका सर्वाधिक प्रिय सृजन है। मृत्यु को वे पलायन के अर्थ में नही अपितु व्यथा,विकृति,अमानवीयता,अन्याय के अवसान के लिए आवश्यक शाश्वत और अंतिम उपाय मानती हैं। एक प्रलय के उपरांत पृथ्वी का नवीनीकरण,विचारों की शुद्धता,प्रकृति का श्रृंगारीकरण होने की कामना रखते हुए उनकी लेखनी ‘मृत्यु कलिकाओं’ के प्रस्फुटन हेतु सतत संवर्धन करती दिखती है।
प्रेम साॅनेट का प्राण तत्व है परन्तु समय के साथ और समाज की आवश्यकताओं और जटिलताओं के साथ इसमें विषयों का बाहुल्य भी परिलक्षित होता है। आधुनिक साॅनेट्स समसामायिक विषयों पर भी अपनी अभिव्यक्ति बखूबी दे रहें हैं। ‘शिशिर के शतदल’ में भी अभिव्यक्ति हुई है।
इस प्रकार एक सार्थक एवं सफल परिचर्चा के साथ ‘परिसंवाद’ आयोजन सम्पन्न हुआ।