अश्रुतपूर्वा II
नई दिल्ली। प्राचीन बसोहली पेंटिंग को आज भी सहेज कर रखा गया है। यह सत्रहवीं सदी की कला है। पिछले दिनों विश्व विरासत दिवस पर जम्मू-कश्मीर सरकार ने राज्य के स्थानीय संग्रहालय में सैकड़ों दुर्लभ और प्राचीन बसोहली पेंटिंग प्रदर्शित की। बसोहली कला को लोकप्रिय बनाने की दिशा में यह बड़ी पहल है। इस पेंटिंग का नाम जम्मू क्षेत्र के बसोहली कस्बे से मिला।
जम्मू संग्रहालय में बसोहली पेंटिंग की प्रदर्शनी देखने बड़ी संख्या में लोग डोगरा कला संग्रहालय पहुंचे। इन पेंटिंग को देख कर लोग चकित हुए। संग्रहालय में कलाकार धीरज कपूर बसोहली पेंटिंग बनाने की कला को प्रदर्शित कर रहे हैं। दर्शकों और खासतौर पर बच्चों ने इसे पसंद किया है। बता दें कि जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले को बसोहली पेंटिंग के लिए भौगोलिक संकेतक (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) यानी जीआई टैग मिला है। इसे हाल ही में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक ने स्वीकृति दी है।
हस्तकला और हथकरघा विभाग के निदेशक विकास के मुताबिक जीआई टैग बसोहली पेंटिंग को प्रोत्साहन देगा। कलाकारों को बेहतर आय में मदद मिलेगी। साथ ही उनकी कला मजबूत ब्रांड के तौर पर उभरेगी। गुप्ता ने कहा, विरासत कला को संरक्षित करने की जरूरत है। विभाग उन लोगों को पंजीकृत करेगा जो इस विधा में चित्रकारी करने के इच्छुक हैं। साथ ही एक छत के नीचे सभी सुविधाओं को देने के लिए बसोहली में एकीकृत केंद्र बनाया जाएगा।
संग्रहालय में बच्चों और वयस्कों को बसोहली पेंटिंग के बारे में जानकारी दी जा रही है। सेना मुख्यालय स्थित संग्रहालय में लगाई गई इस प्रदर्शनी में पांडुलिपियों, विरासत तस्वीरों, प्राचीन वस्तुओं, उपकरणों, दुर्लभ किताबों और सिक्कों को प्रदर्शित किया गया है। बसोहली पेंटिंग का विकास जम्मू-कश्मीर में 17वीं और 18वीं शताब्दी के बीच हुआ था। (मीडिया में आए समाचार पर आधारित)
बसोहली पेंटिंग का विकास जम्मू-कश्मीर में 17वीं और 18वीं शताब्दी के बीच हुआ। इस प्रदर्शनी में पांडुलिपियों, विरासत तस्वीरों, प्राचीन वस्तुओं, उपकरणों, दुर्लभ किताबों और सिक्कों को प्रदर्शित किया गया है।