कविता काव्य कौमुदी

सब कुछ

सदानंद शाही II

सब कुछ खत्म होने के बाद भी
सब कुछ बचा रह जाता है
सब कुछ के इन्तजार में

हम सब कुछ खत्म होने का
मर्सिया पढ़ चुके होते हैं
शोकगीत भी हमारा साथ छोड़ चुके होते हैं
रुदालियाँ रो-गाकर लौट चुकी होती हैं

कि
अचानक
सबको व्यर्थ करता हुआ
प्रकट हो जाता है
सब कुछ
जस का तस ।

About the author

सदानंद शाही

कुलपति
शंकराचार्य प्रोफ़ेशनल यूनिवर्सिटी, भिलाई
छत्तीसगढ़ ।

error: Content is protected !!