अश्रुत पूर्वा II
नई दिल्ली। अगर संस्कृति मंत्रालय की संसदीय समिति की सिफारिश मान ली गई तो लेखक किसी भी कारण से पुरस्कार वापस नहीं कर सकेंगे। सरकार से मतभेद के कारण विगत कुछ सालों में कई लेखकों मे पुरस्कार वापस कर चुके हैं। इससे देश में अलग तरह का संदेश गया। इस संबंध में पिछले दिनों संसद के दोनों सदनों मे एक रिपोर्ट पेश की है जिसमें लेखकों से एक शपथ फार्म भरनावे का सुझाव दिया गया है।
संसदीय समिति की यह सिफारिश मान ली जाती है तो साहित्य अकादेमी सहित कोई भी सरकारी पुरस्कार लौटना संभव नहीं होगा। समिति का मानना है कि पुरस्कार वापस किए जाने से देश का अपमान होता है। इससे पुरस्कारों की साख भी कम होती है। समिति ने सुझाव दिया है कि पुरस्कार के लिए नाम तय करने पर इसे प्राप्त करने वाले से सहमति जरूर लें। समिति ने कहा है कि अकादेमियों के पुरस्कार किसी भी लेखक और कलाकार के लिए सबसे बड़ा सम्मान है।
समिति का मानना है कि साहित्य अकादेमी या दूसरी अकादमियां अराजनीतिक संगठन हैं। इनमें राजनीति के लिए कोई जगह नहीं। इसलिए पुरस्कार पाने वाले से स्वीकृति के लिए एक शपथपत्र लिया जाए। समिति ने अपनी रपट में यहां तक कहा है कि शपथपत्र के बिना पुरस्कार दिए ही नहीं जाने चाहिए। यह भी तय होना चाहिए कि अगर कोई पुरस्कार लौटाए तो भविष्य में कभी उसके नाम पर दोबार विचार न हो।
समिति ने यह मुद्दा भी उठाया है कि पुरस्कार लौटाने वाले कुछ विजेता कई अकादमियों में अब भी क्यों जुड़े हुए हैं। पुरस्कार लौटाने का यह सिलसिला 2015 में शुरू हुआ था। संसद में रपट पेश करने वाली इस संसदीय समिति के अध्यक्ष वी विजयसाई रेड्डी हैं। समिति की सिफारिशों की लेखकों में खासी चर्चा है। (माडिया में आए समाचार पर आधारित)