कविता काव्य कौमुदी

क्या सोच रही है नदी

राकेश धर द्विवेदी II

क्या सोच रही है नदी
नदी कुछ सोच रही है
कुछ मौन की भाषा बोल रही है,
देख रही है तुम्हें
इस सुंदरतम धरा को
निरावृत्त करते हुए,
देखरही है श्राद्ध करते हुए
उस श्रद्धा का जो बरसों से
तुम्हारे हृदय में था।

बाजारवाद के इस युग में
दु:शासन बन कर तुम
उसे निर्वस्त्र कर रहे,
लोक-लज्जा त्याग कर
तुम उसे अस्त-व्यस्त कर रहे
तुम्हारी इस घिनौनी हरकत से
वह नाले में तब्दील हो रही
तुम अपनी ओछी हरकतों से
उसे छल रहे और मिटा रहे
उसके अस्तित्व को खत्म कर रहे।

लेकिन सावधान!
नदी का अस्तित्व प्राणवायु है
तुम्हारे जीवन का।
उसके त्याग और संयम से
चिरायु हो तुम।
तो अब अपने चिंतन में
लाओ तुम बदलाव
मां स्वरूपा है नदी,
इसका खोया हुआ
गौरव वापस लाओ।

About the author

राकेश धर द्विवेदी

राकेश धर द्विवेदी समकालीन हिंदी लेखन के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे कवि हैं तो गीतकार भी। उनकी कई रचनाएं प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। द्विवेदी की सहृदयता उनकी रचनाओं में परिलक्षित होती है। उनकी कुछ रचनाओं की उपस्थिति यूट्यूब पर भी देखी जा सकती है, जिन्हें गायिका डिंपल भूमि ने स्वर दिया है।

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