कथा आयाम कहानी

उपेक्षिता बन कर रह गई वो

राधिका त्रिपाठी II

मोही अर्थात मोह लेने की अदा। जैसा नाम वैसी ही अदाएं। शायद ही आफिस में ऐसा कोई होगा जो उसका दीवाना न हो। क्या नौजवान क्या अधेड़। सभी उसकी एक झलक पाने को लालायित रहते। फिर मोही तो मोही थी। उसने बस मोह लेना सीखा, लेकिन बांधना नहीं। उस दिन आफिस की एक पार्टी में वह काले रंग की साड़ी पहन कर आई तो वहां सभी अपनी पलकेंं झपकना भूल गए। जो जहां था वहीं का वहीं थम गया। मोही आदतन मुस्कुराती हुई आगे बढ़ गई।
अचानक उसकी नजर एक शख्स पर गई। वह हाथों की उंगलियों में सिगरेट दबाए हुए किसी से बात कर रहा था। मोही उसके बगल से निकली तो उसने सरसरी नजर से देखा और सिगरेट के कश लेने लगा। मानो मोही का कुछ खास जादू उस पर नहीं चला। ऐसे ही कई पार्टियों में मोही और उसकी मुलाकात हुई। मोही को एक खिंचाव महसूस होने लगा उस व्यक्ति से। वह अपने आफिस के बॉस से उस शख्स के बारे में पूछती है, तो पता चलता है। शिखर नाम है उसका। बड़ा कारोबारी है। शादी-शुदा और बाल-बच्चे वाला है। मोही मन ही मन में बुदबुदाई, शादी-शुदा?
घर पर पहुंच कर उसने शिखर का नाम मोबाइल फोन पर सर्च किया। फेसबुक और ट्विटर पर ढूंढा। कुछ घंटों की खोजबीन के बाद शिखर का एफबी अकाउंट मिल गया। वह बड़ी बारीकी से हर फोटो को देखने लगीं।  फिर अचानक ही न जाने क्या सोच कर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दिया। अगले दिन आॅफिस गई तो बॉस के केबिन में उसे बुलाया गया। वहां शिखर को देख कर सकपका गई। बॉस ने दोनों का परिचय कराया। और बताया कि शाम की पार्टी के लिए निमंत्रण देने आए हैं शिखर।
दोनों ने एक दूसरे को देखा। मोही ने हामी भरते हुए कहा, जरूर मिलते हैं शाम को। वह जल्दी ही घर आई और तैयार हो गई। उसे रात का इंतजार था। जैसे ही उसकी घड़ी ने रात के आठ बजाए वह कैब बुक कर पार्टी के लिए निकल गई। आज तो शिखर भी बहुत स्मार्ट लग रहा था।  मोही देखते ही फिदा हो गई उस पर। दोनों गाने की धुन पर नाचते हुए एक दूसरे में खोए रहे। कब पार्टी खत्म हुई, पता भी नहीं चला अचानक ही मोही की सहेली ने कहा, अब चलो भी बहुत देर हो गई है। इस पर शिखर ने कहा, मैं मोही को उसके घर छोड़ दूंगा। मोही और शिखर दोनों साथ निकले गाड़ी से …।
रास्ते में मोही ने शिखर को बताया की कैसे उसने सोशल मीडिया पर उसे ढूंढ़ा और एक-एक फोटो को घंटों तक देखती रही। शिखर कभी हौले से मुस्कुरा देता तो कभी आश्चर्य से आंखें बड़ी कर लेता। इतने में मोही का घर गया। वह शिखर के गले लगते हुए बोलती है मुझसे शादी कर लो न प्लीज। मैं किसी को बोलूंगी नहीं। आपका नाम भी नहीं बताऊंगी। यह राज हम दोनों के बीच रहेगा।
कुछ महीने बाद मोही और शिखर एक मंदिर में जाकर शादी कर लेते हैं। शिखर एक फ्लैट खरीद कर मोही को दे देता है और वहां आता जाता रहता है। इधर मोही अपने आफिस में बोल देती है कि उसने शादी कर ली। और कुछ शादी की फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देती है। फोटो में मोही तो दिखती है, लेकिन शिखर की कभी पीठ तो कभी साइड का ही चेहरा दिखाई देता।
दोनों बेहद खुश रहते एक दूसरे के साथ। सब कुछ ठीक चल रहा था। लेकिन मोही अंदर ही अंदर टूट रही थी। अकसर ही वह शिखर से बोल दिया करती कि तुम मेरे तो हो नहीं, मैंने तुम्हें चुराया है। और चोरी की हुई चीज दुनिया के समाने नहीं लाई जाती। न तुम मेरे न तुम्हारा नाम ही मेरे नाम के साथ जुड़ा। क्या होगा इस रिश्ते का भविष्य? भविष्य ही क्या इसका तो कोई वर्तमान भी नहीं। कुछ समय बाद वह डिप्रेशन की शिकार हो गई। अकेलापन उसे खाने को दौड़ता। आफिस न जाने की वजह से उसे काम से हटा दिया गया था।
अब मोही लेटे-लेटे कमरे की छत को घूरा करती। और शिखर बिजनेस टूर पर कभी बाहर तो कभी अपने बच्चों और पत्नी के साथ छुट्टियां मनाने चला जाता। क्या अकेले मोही ही अपनी इस हालत के लिए जिम्मेदार थी? शिखर को क्या चाहिए था? पत्नी समाज बच्चे या मोही…! या कुछ और। वह उपेक्षिता बन कर रह गई। 

About the author

राधिका त्रिपाठी

राधिका त्रिपाठी हिंदी की लेखिका हैं। वे सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर बेबाक होकर लिखती हैं। खबरों की खबर रखती हैं। शायरी में दिल लगता है। कविताएं भी वे रच देती हैं। स्त्रियों की पहचान के लिए वे अपने स्तर पर लगातार संघर्षरत हैं। गृहस्थी संभालते हुए निरंतर लिखते जाना उनके लिए किसी तपस्या से कम नहीं है।

error: Content is protected !!