अश्रुत पूर्वा संवाद II
नई दिल्ली। अमीन सायानी नहीं रहे। जिस मुंबई में उन्होंने जन्म हुआ उसी शहर से वे अंतिम सफर पर निकल गए। दिल का दौरा पड़ने से 20 फरवरी को उनका निधन हो गया। अपने खास अंदाज से रेडियो के करोड़ों श्रोताओं में करीब पांच दशक तक जादू चलाने वाले अमीन सायानी को बरसों तक नहीं भूल पाएंगे। रेडियो के सुनहरे दौर की मखमली आवाज थम गई है।
साल 1994 तक रेडियो पर उनकी सम्मोहक आवाज श्रोता सुनते रहे। उनका खास कार्यक्रम गीतमाला बेहद मशहूर हुआ। अमीन सायानी ने अपने करिअर की शुरुआत आल इंडिया रेडियो से की थी। उस समय कौन जानता था कि वे अपनी मखमली आवाज और अपनी खास प्रस्तुतियों से रेडियो को घर-घर लोकप्रिय कर देंगे। तब लोग उनके कार्यक्रमों को चाव से सुनते थे। रेडियो घर-घर सुना जाता था।
अमीन सायानी को रचनात्मक गुण विरासत में मिले। उनकी मां ‘रहबर’ नाम से उर्दू पत्रिका निकालती थीं। भाई अंग्रेजी का उद्घोषक था। दोनों से अमीन वे काफी कुछ सीखा। अपनी एक नई भाषा बनाई। आल इंडिया रेडियो से परिचय उनके भाई हामिद ने ही कराया था। शुरू में अमीन अंग्रेजी कार्यक्रमों से जुड़े रहे। बाद में वे हिंदी कार्यक्रम प्रस्तुत करने लगे। अमीन सायानी ने रेडियो को साहित्यिक भाषा से बाहर निकाल कर बोलचाल की भाषा दी।
अमीन सयानी को रेडियो शो ‘गीतमाला’ से ही पहचान मिली। साल 1952 में शुरू हुआ यह कार्यक्रम चर्चित हो गया था। इसी के साथ लोकप्रिय हो गए थे अमीन सायानी भी। उन्होंने ‘गीतमाला’ को 1952 लेकर 1994 तक पेश किया। उनका यह कार्यक्रम ‘बिनाका गीतमाला’ पहले रेडियो सिलोन पर आता था। तीस मिनट के इस कार्यक्रम का संगीत प्रेमी बेसब्री से इंतजार करते थे। रेडियो की सुई एक खास बिंदु पर रखने के बाद लोग इस कार्यक्रम को सुन पाते थे।
सुरीले गीतों का यह कार्यक्रम ‘बिनाका माला’ का नाम बाद में सिबाका माला हो गया। फिर इसे ‘हिट परेड’ के नाम से भी सुना गया। यह कार्यक्रम 42 साल तक चला। साल 2000 के बाद इसे मूल नाम से दोबारा शुरू किया गया। अमीन सायानी ने इतने कार्यक्रमों में आवाज दी कि आप गिनती करते थक जाएं। वे कभी नहीं थे। अमीन सायानी का यह स्वर कानों में गूंजता रहेगा-
‘बहनों और भाइयों, मैंं आपका दोस्त अमीन सयानी बोल रहा हूं।’
रेडियो को बोलचाल की भाषा दी अमीन सायानी ने