अश्रुत पूर्वा संवाद II
नई दिल्ली। गीतकार-कवि और शायर गुलजार को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार देने का एलान किया गया है। प्रसिद्ध कहानीकार प्रतिभा राय की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने जगतगुरु रामभद्राचार्य को भी ज्ञानपीठ से सम्मानित करने की घोषणा की है।
जगतगुरु रामभद्राचार्य और कवि-शायर गुलजार के नाम 58वें ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए तय किए गए। चयन समिति के मुताबिक संस्कृत विद्वान जगतगुरु रामभद्राचार्य और उर्दू साहित्य के लिए गुलजार का चयन किया गया। बता दें कि साहित्य अकादेमी के बाद भारतीय ज्ञानपीठ का पुरस्कार को साहित्य जगत में सर्वोच्च माना जाता है। इस पुरस्कार की स्थापना साठ के दशक में की गई थी। पहली बार मलयालम कवि जी शंकर गुरु को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखन के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित हो चुके गुलजार ने अपनी रचनात्मक यात्रा बलराज साहनी की फिल्म ‘काबुलीवाला’ से की थी। उन्हें कई कर्णप्रिय गीतों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। कला क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने 2004 में गुलजार को पद्मभूषण से सम्मानित किया था। वहीं हिंदी सिनेमा में उनके विशिष्ट योगदान के लिए दादा साहेब पुरस्कार दिया गया था। जबकि उर्दू साहित्य के लिए उन्हें 2002 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला था।
गीत लेखन में गुलजार का कार्य अविस्मरणीय है। उनके लिखे कई गीतों में हम सभी जीवन दर्शन देख सकते हैं। वहीं ‘आने वाला पल जाने वाला है’ या ‘मुसाफिर हूं यारों घर है न ठिकाना’, ऐसे गीत हैं जो बताते हैं कि यह जीवन एक यात्रा है। जहां हम रह रहे हैं वह घर अस्थायी है। आपको एक दिन यहां से जाना है। इसी तरह ‘ऐ जिंदगी गले लगा ले…’ या ‘तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूं…’ सुन कर हर कोई भावुक हो उठता है।
दो वक्त की रोटी के लिए मैकेनिक का काम कर चुके संपूरन सिंह कालरा यानी गुलजार ने विमल दा से लेकर हृषिकेश मुखर्जी जैसे फिल्मकारों के साथ काम किया। उन्होंने कुछ चर्चित फिल्मों यथा मौसम, आंधी, परिचय, कोशिश, खुशबू और परिचय का निर्देशन किया। इसके अलावा गुलजार ने कई फिल्मों के लिए पटकथा लिखी। कोई दो राय नहीं कि उन्होंने गीतों और शायरी से फिल्म-साहित्य को भी ‘गुलजार किया’ है। अब ज्ञानपीठ भी गुलजार हो उठा है।