अश्रुत तत्क्षण

क्या है नाटकों के सामाजिक सरोकार?

अश्रुतपूर्वा संवाद II

नई दिल्ली। बीती 17 फरवरी को भारतीय भाषा परिषद एवं वाराही के संयुक्त तत्वावधान में परिचर्चा  रखी गई। इसका  विषय था- नाटकों का वर्तमान सामाजिक सरोकार। सभी वक्ताओं ने कोलकाता के वर्तमान रंगमंचीय गतिविधियों , महत्ता, उसकी विपन्नता एवं उसके सामाजिक सरोकार से संबंधित वक्तव्य दिए जो अत्यंत प्रेरक एवं आत्मसात करने लायक है। सभी ने कहा कि नाटकों का समाज से गहरा संबंध है। परिचर्चा परिषद के सभागार में संपन्न हुई।
कोलकाता के दिग्गज रंगकर्मियों ने रंगमंच से जुड़े निर्धारित विषय पर अपने अनुभव साझा किए। परिषद की अध्यक्ष डा. कुसुम खेमानी की अध्यक्षता में हुए इस कार्यक्रम में संयोजक थे परिषद से जुड़े आशीष झुनझुनवाला एवं संयोजक परिषद से जुड़ी बिमला पोद्दार तथा वाराही की अध्यक्ष नीता अनामिका।
नीता अनामिका के स्वागत भाषण ने दिया। इस अवसर पर वाराही द्वारा कुसुम खेमानी को साहित्य कला क्षेत्र में उनके विशेष अवदान के लिए सम्मानित किया गया। प्रो. शंभू नाथ को उनके साहित्य क्षेत्र में अवदान के लिए विशेष रूप से सम्मानित किया गया। कुसुम खेमानी ने रंगकर्मी उमा झुनझुनवाला को नाट्य जगत में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया।
सभी वक्ताओं ने आज के परिप्रेक्ष्य में नाटकों के सामाजिक सरोकार पर अपने विचार रखे। इस परिचर्चा में वक्ता थे  प्रेम कपूर, प्रताप जायसवाल, महेश जायसवाल, आलोक पर्णा गुहा और उमा झुनझुनवाला तथा प्लाबन बसु। सभी ने नाटकों के महत्त्व को समझाते हुए कहा कि इसका समाज से गहरा संबंध है। उन्होंने श्रोताओं को रंगमंच की ओर ध्यान देने के लिए आग्रह किया।  
अंत में भारतीय भाषा परिषद की पूर्व मंत्री विमला पोद्दार के धन्यवाद ज्ञापन के साथ ही यह कार्यक्रम संपन्न हुआ। कार्यक्रम का संचालन खुर्शीद इकराम मन्ना और सुशील कान्ति ने किया।

भारतीय भाषा परिषद एवं वाराही की परिचर्चा: सभी ने कहा, नाटकों का समाज से गहरा संबंध है

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