प्रगतिशील समाज के लिए महिला सशक्तिकरण आवश्यक है, लेकिन इसमें संतुलन भी होना चाहिए। हम ऐसी स्थिति की अनुमति नहीं दे सकते जहां पुरुष खुद को इतना अलग-थलग या असमर्थित महसूस करें कि वे आत्महत्या जैसे चरम कदम उठाने के लिए प्रेरित हों, और महिलाओं को अन्याय का अपराधी बनने का जोखिम हो। टीवी चैनल पर एक कार्यक्रम में अश्रुतपूर्वा की संस्थापक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सांत्वना श्रीकांत ने ये बात कही।
उन्होंने कहा कि जहां कानूनों को महिलाओं की रक्षा करनी चाहिए, वहीं उन्हें सभी लिंगों के लिए निष्पक्षता भी सुनिश्चित करनी चाहिए। कई मौजूदा कानून महिला-केंद्रित हैं, जो महिला अधिकारों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए उनकी निगरानी भी की जानी चाहिए। न्याय समता के बारे में हो, पक्षपात के बारे में नहीं।
डॉ. सांत्वना श्रीकांत ने जोर देकर कहा कि अब समय आ गया है कि हम लिंग-तटस्थ कानूनों पर जोर दें जो महिलाओं और पुरुषों – सभी की समान रूप से रक्षा करे। सच्चा सशक्तिकरण तभी होता है जब दोनों लिंग सुरक्षित, सम्मानित और समर्थित महसूस करते हैं और एक संतुलित समाज बनाने के लिए मिलकर काम करते हैं। आइए सभी के लिए न्याय, निष्पक्षता और मानसिक स्वास्थ्य की वकालत करें।
इन समस्याओं के समाधान के लिए शिक्षा, सशक्तिकरण, कानूनों का सख्त पालन, और सामाजिक सोच में बदलाव जरूरी है।