आदमी एक लघु कथा -कहानी-अजय कुमार
पहले तो वो यदा कदा आये। फिर मुझसे इतना घुल मिल गये कि रोज रोज आने लगे।बस फिर क्या था वो बकायादा मेरे लिए रोज कुछ नयी बात, नयी जानकारी या नयी खबर लाने लगे, अपनी एक्सपर्ट ऑपिनियन के साथ।मुझे भी ये रूटीन अच्छा लगने लगा था।एक आदत सी हो गई थी मुझे उनकी।पर एक दिन वो नहीं आये।कुछ देर तक तो मैंने इंतजार किया। फिर मरे मन से अपने लिए ही
सिर्फ चाय बनाई। पर वह अगले दिन और उससे अगले दिन भी नहीं आये तब तो मैं कुछ परेशान सा हो गया।मैंने तो कभी उन से उनके घर का पता भी नहीं पूछा था । जरूरत ही नहींपड़ी थी कभी ऐसी। पता नहीं कौन सा मकान था उनका।होगा तो पास ही कहीं। मन में कई तरह के ख्याल आए,जैसे जेहन में एक कीड़ा सा कुलबुलाने लगा।
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