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एक ग़ज़ल अंजुम बदायूनी की

आवाज़ : शरमीन

मशीख़तों को फ़रोग़ देना नहीं है हुस्ने – विक़ार मेरा
न इतनी हल्की ज़ुबान मेरी न इतना नीचा शयार मेरा

ये क़द-बुलन्दी की कोशिशें सब सुकूने दिल को मिटा रही हैं
जो सिमटा, सिमटा वुजूद में है वो ही है आखिर क़रार मेरा

About the author

अंजुम 'बदायूनी'

अपना परिचय क्या दूँ। पेशे से इंजीनियर अर्थात कल-पुर्ज़ों से माथा-पच्चीस किन्तु साहित्यिक रूझान यानि नर्मो-नाज़ुक विचारों से आलिंगन। यंत्र और लेखनी की दो विविध विचारधाराओं के आपसी संघर्ष या सहयोग से जीवन को परिभाषित करने की चेष्टा को ही साथियों एवं शुभचिंतकों ने "कविता, नज़्म, ग़ज़ल" जैसी उपमाओं से सुशोभित कर दिया।
बस यही है मेरी छोटी सी पूंजी, "मेरी शायरी" यानि,आपके "बहुमूल्य एहसास और विचार" आपको ही अर्पित करने का तुच्छ प्रयास

तेरा फ़न भी तेरा नहीं 'अंजुम'
तेरे अशआर भी ज़माने के
या यूं कहूं कि,
मेरे अशआर हैं हिस्सास दिलों की दौलत
यह महज़ गाने बजाने का मसौदा ही नहीं

'अंजुम बदायूनी'।

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