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नहीं रहे संतूर के संत भजन सोपोरी  

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अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। कला प्रेमियों के लिए एक और दुखद खबर। पहले पंडित शिव कुमार शर्मा फिर गायक केके और अब भजन सोपोरी। इससे पहले करोड़ों प्रशंसों को बिलखता छोड़ गई लता मंगेशकर। दो जून को संतूर के संत नाम से विख्यात भजन सोपोरी ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया। वे कैंसर के उपचार के लिए हरियाणा के गुरुग्राम स्थित एक अस्पताल में भर्ती थे। वे 73 साल के थे। उनके परिवार में पत्नी और दो बेटे सौरभ तथा अभय हैं। दोनों पुत्र संतूर वादक हैं।

बेटे अभय ने बताया कि पिछले साल जून में पिताजी को बड़ी आंत का कैंसर होने का पता चला था। हमने उन्हें तीन हफ्ते पहले इम्यूनोथेरेपी उपचार के लिए गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया था। मगर उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं हुआ। संतूर वादक की बड़ी आंत में चौथे स्टेज का कैंसर था और इस साल फरवरी से अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। बीमारी उनके जिगर और हड्डियों तक फैल गई थी। उन्हें पिछले कुछ महीनों में कीमोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी दी गई थी। उनकी हालत बिगड़ने पर उन्हें 18 मई 2022 को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों की पूरी कोशिश के बावजूद उनके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था।

  • भजन सोपोरी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। इनमें  पद्मश्री, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और जम्मू कश्मीर स्टेट लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड शामिल हैं। वे उत्तरी कश्मीर के सोपोर जिले के रहने वाले थे और सूफियाना घराने से आते थे। सोपोरी को संतूर वादन की बारीकियां दादा पंडित संसार चंद सोपोरी और बाद में उनके पिता पंडित शंभू नाथ सोपोरी ने सिखाई थी।

भजन सोपोरी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। इनमें पद्मश्री, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और जम्मू कश्मीर स्टेट लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड शामिल हैं। वे उत्तरी कश्मीर के सोपोर जिले के रहने वाले थे और सूफियाना घराने से आते थे। सोपोरी को संतूर वादन की बारीकियां दादा पंडित संसार चंद सोपोरी और बाद में उनके पिता पंडित शंभू नाथ सोपोरी ने सिखाई थी। भजन सोपोरी के पास दो मास्टर डिग्रियां थीं। एक भारतीय शास्त्रीय संगीत में और दूसरी अंग्रेजी साहित्य में। उन्होंने वाशिंगटन विश्वविद्यालय में पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के गुर भी सीखे थे।

भजन सोपोरी ने हिंदी, कश्मीरी, डोगरी, सिंधी, उर्दू और भोजपुरी के साथ-साथ फारसी और अरबी सहित लगभग सभी भारतीय भाषाओं में छह हजार से ज्यादा गीतों के लिए संगीत तैयार किया। उन्होंने गालिब, दाग, मोमिन, बहादुर शाह जफर, इकबाल, फैज अहमद फैज और फिराक गोरखपुरी जैसे महान शायरों की रचनाओं के लिए भी संगीत तैयार किया। उन्होंने कबीर और मीरा की रचनाओं को भी धुन दी। साल 2011 में भारतीय डाक विभाग ने कला और संस्कृति के क्षेत्र में सोपोरी के असाधारण कार्य को सम्मान देने के लिए पांच रुपए का डाक टिकट जारी किया। (यह प्रस्तुति एजंसियों की खबरों पर आधारित)

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