सर्वेश्वर दयाल सक्सेना II
हंसो जोर से जब, तब दुनिया
बोली इसका पेट भरा है
और फूट कर रोया जब
तब बोली नाटक है नखरा है
जब गुमसुम रह गया, लगाई
तब उसने तोहमत घमंड की
कभी नहीं वह समझी उसके
भीतर कितना दर्द भरा है
दोस्त कठिन है
यहां किसी को भी
अपनी पीड़ा समझाना
दर्द उठे तो सूने पथ पर
पांव बढ़ाना, चलते जाना।