मनस्वी अपर्णा II
सुष्मिता सेन और ललित मोदी रिश्ते में हैं, तस्वीरों से जाहिर है दोनों गहरे प्रेम में हैं और शादी करना चाहते हैं, जैसा कि हम सबकी आदत पड़ चुकी है किसी भी बात में बुराई और गलती खोज निकालने की, तो हम उन दोनों को ही उनके इस रिश्ते के लिए तरह-तरह से ट्रोल कर रहे हैं। हम ललित मोदी की संपत्ति पता लगाने की कोशिश में हैं ताकि ये सिद्ध कर सकें कि सुष्मिता सेन ने क्या फायदा देखा होगा, या फिर हम सुष्मिता के पुराने रिश्तों की पड़ताल कर रहे हैं ताकि ये साबित कर सकें कि बहुत सारे पुरूषों से न निभा पाने के बाद आखिरकार सुष्मिता ने ललित को चुना है।
सुष्मिता 47 वर्षीय प्रतिभाशाली और सशक्त महिला हैं, साथ ही खुले दिल दिमाग वाली हैं, अपने निर्णय अपनी इच्छा और सुविधा से लेती हैं किसी भी तरह के दबाव में आकर नहीं…। पूर्व मिस यूनिवर्स रह चुकी हैं, फिल्मों और बेव सीरीज में एक्टिव हैं, तो जाहिर तौर पर ग्लैमर और पैसे से या किसी तथाकथित सुरक्षित भविष्य की आकांक्षा में कोई निर्णय नहीं ले रही हैं, ये सब उनके पास है ही।
ललित मोदी 57 साल के हैं, प्रतिष्ठित और संपन्न परिवार से हैं, उन्होंने धन, वैभव और ग्लैमर को भली-भांति देखा है, तो कोई वजह नहीं है कि वो सुष्मिता के ग्लैमर से प्रभावित होकर कोई निर्णय ले रहें हैं… सारे कारण मूर्खों के थोपे हुए हैं जिनको प्रेम और सहचर्य की कीमिया समझ ही नहीं आती।
- ऐसा नहीं है कि प्रेम में शरीर का कोई अस्तित्व नहीं होता, बिल्कुल होता है लेकिन उसकी अपनी सीमा है, वो सिर्फ साधन मात्र है जो उस अभूतपूर्व एहसास को अभिव्यक्त कर सकता है, लेकिन हमारा दुर्भाग्य ये है कि हम शरीर से इतर सोच ही नहीं पाते।
दो व्यक्तियों के बीच आकर्षण और प्रेम बहुत अलग घटना है, ये करीब-करीब अनप्रेडिक्टेबल होती है, यह और बात है कि हम कोई न कोई कारण ढूंढ निकालना चाहते हैं ताकि उस कीमिया को समझ सकें। ऐसा नहीं है कि प्रेम में शरीर का कोई अस्तित्व नहीं होता, बिल्कुल होता है लेकिन उसकी अपनी सीमा है, वो सिर्फ साधन मात्र है जो उस अभूतपूर्व एहसास को अभिव्यक्त कर सकता है, लेकिन हमारा दुर्भाग्य ये है कि हम शरीर से इतर सोच ही नहीं पाते, ललित मोदी की यौन दक्षता और क्षमता पर बन रहे मीम्स और सुष्मिता के पुराने रिश्तों की पड़ताल इसका उदाहरण है, हम इस मामले में इतने निर्मम हैं कि किसी की निजी जिंदगी को, निजी पलों को सरेआम चर्चा में लाने में, उपहास करने में हमें कोई आपत्ति नहीं होती है।
दो व्यस्क किस वजह से अंतरंग होते हैं और एक दूसरे को चुनते हैं यह उनका अपना निर्णय होता हैं और चुनाव के अपने पैरामीटर्स होते हैं क्या ये ठीक नहीं है कि हम उन्हें अपनी निजता की स्वतंत्रता दें। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात प्रेम और आकर्षण बहुत सहज है इनको इतना बड़ा मुद्दा बनाना कतई जरूरी नहीं ये मनुष्य का सहज स्वभाव है। सबसे बेहतर तो ये है कि किसी को हमारी सोच में फिट करने की बजाय हम अपनी सोच को इतना विस्तार दे दें कि उसमें हर व्यक्ति, हर व्यवहार और हर घटना के लिए जगह हो, स्वीकार हो। (यह लेखिका अपने विचार हैं।)