आलेख कथा आयाम

राजधानी में मौसम बदलने के साथ खतरे में है वायु गुणवत्ता

अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। जो लोग देश की राजधानी दिल्ली में रह रहे हैं, उन्हें मालूम है कि वायु प्रदूषण इन दिनों कितनी तकलीदेह हो गई है। देश की सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली सहित कई राज्य सरकारों से रिपोर्ट तलब की है और पूछा कि हवा में प्रदूषण रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि अक्तूबर आते ही आसमान में स्मॉग दिखने लगता है। स्मॉग यानी कोहरे के साथ धुआं। लेकिन अभी कोहरा भी नहीं छाया, मगर दिल्ली के आसमान में धूल-धुएं की परत दिखाई देने लगी है। अगर आप घर से बाहर हैं और यातायात जाम में फंसे हुए हैं तो उस वक्त क्या हालत होती है, यह भुक्तभोगी ही जानता है।
निसंदेह मौसम में भारी बदलावों का असर स्वास्थ्य पर अधिक पड़ता है। वायु प्रदूषण के कारण लोगों की नसों, मस्तिष्क, गुर्दे, यकृत और अन्य अंगों पर दीर्घकालिक असर पड़ने की संभावना होती है। वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के संपर्क में आने से कई तरह के प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं। इससे श्वसन संक्रमण, हृदय रोग और फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। वायु प्रदूषकों के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों तरह के जोखिम स्वास्थ्य प्रभावों से जुड़े हैं।
इस समय नाइट्रोजन आॅक्साइड, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (वीओसी), सल्फर डाइआॅक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) हमारे वायुमंडल में जमा हो रहे हैं, खासकर परिवहन, ऊर्जा उत्पादन, ऊर्जा उपयोग और उद्योग में अक्षमताओं के कारण। वायुमंडल में उत्सर्जित रासायनिक घटक और प्रदूषक जलवायु और मौसम के आधार पर दूर-दूर तक चले जाते जाते हैं। हवा की गुणवत्ता प्राकृतिक प्रदूषकों, जंगली आग से निकलने वाले धुएं, हवा में मौजूद रेत और धूल के साथ-साथ तंबाकू के धुएं के संपर्क में आने या ठोस ईंधन के घर के अंदर जलने से भी प्रभावित होती है। सांस लेने पर ये प्रदूषक हमारे शरीर के श्वसन प्रणाली में गहराई से प्रवेश करते हैं और मानव शरीर को क्षतिग्रस्त करते हैं।
वायु प्रदूषण अब दुनिया का सबसे बड़ा पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिम है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के एक हालिया अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण और अत्यधिक गर्मी के दोहरे खतरे दिल के दौरे में चिंताजनक वृद्धि को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत में वायु प्रदूषण में धूल और निर्माण का योगदान लगभग 59 फीसद है, जिसके बाद अपशिष्ट जलाना आता है। शिल्पकला गतिविधियां अधिकतर शहरी क्षेत्रों में होती हैं जबकि अपशिष्ट जलाने की गतिविधियां ग्रामीण क्षेत्रों (कृषि) में होती हैं।

ऐसे में क्या करें ?
निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करें। क्योंकि सड़क पर जितनी कम गाड़ियां रहेंगी उतना कम प्रदूषण भी होगा। अपने बच्चों को निजी वाहन से स्कूल छोड़ने की जगह उन्हें स्कूल की बस में जाने के लिए प्रोत्साहित करें। जहां तक संभव हो, खुद भी दफ्तर जाने के लिए सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करें। 
इन दिनों इलेक्ट्रिक/बैटरी चालित गाड़ियों का प्रचलन बढ़ा है। बैटरी वाली स्कूटी और साइकिल के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। डीजल और सीएनजी कारों का प्रयोग अब बंद होना चाहिए। पेट्रोल कारों की जगह अब बैटरी कारें जगह लेंगी। वैसे भी अगले सात सालों में सड़कों पर इलेक्ट्रिक गाड़ियां ही चलाने देने की योजना है। तब हो सकता है थोड़ी राहत मिले। (स्रोत : हील इनिशिएटिव)

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