आलेख

गुजर गया जो आंखों के सामने से

सांत्वना श्रीकांत II

नई दिल्ली। समय कभी ठहरता नहीं। वह आपकी आंखों के आगे से गुजर जाता है। कभी-कभी लगता है कि समय के चक्र में हम स्वयं गुजर रहे हैं। धीरे-धीरे रीत रहे हैं सागर में बहते हुए उस घड़े की तरह, जो बाहर झांक कर देखता ही नहीं। खुद भीतर से खाली हो जाता है। जबकि उसे जल में ही मिल जाना है। इसी प्रपंच में जिंदगी निकल जाती है। बस इसे ही तो रोकना है। खाली होते मन को भरना है। अपनी रचनात्मकता से। क्योंकि पूरी दुनिया प्राकृतिक विध्वंस की ओर बढ़ रही है। समरसता के अभाव में मनुष्यता खतरे में है। इसे सिर्फ साहित्य ही बचा सकता है।
भारत के लिए 2023 अविस्मरणीय वर्ष रहा। साहित्य, राजनीति और कूटनीति के लिए यह साल याद किया जाएगा। कितना दम है, भारतीयों ने यह साबित किया। इस दौर में जहां इतिहास के कुछ पन्ने निकाल दिए गए, तो कुछ लोग इसमें गुम हो गए सदा के लिए। इसी के साथ नया इतिहास लिखने का दौर भी है। पूरी दुनिया से साहित्य अकादेमी पुरस्कार विजेता संजीव के उपन्यास का शीर्षक कहता है-मुझे पहचानो। सच ही है कि पूरी दुनिया भारत, भारतीय और हिंदी में रचने वालों को पहचान रही है। उन्हें सम्मानित कर रही है। इस लिहाज से इस दौर का इस्तकबाल किया जाना चाहिए।
बंद मुट्ठी में रेत की तरह 2023 भी फिसल गया। दिन से लेकर सप्ताह चुटकियों में निकल गए। जिन मुट्ठियों में साल भर की बेचैनियां थीं, उन्हें खोलने का समय है। अब जाने दीजिए उन्हें। उदासियों की स्याही बह जाने दीजिए। ऐसे दौर में जब संवेदनाएं मर रही हैं, उसे बचाने के लिए एक दूसरे की फिक्र कीजिए। दूर से सही दुआ-सलाम कीजिए। गुजरते साल ने भी चुनौतियां दी हैं। हमारे आसपास ही नहीं, दिलों तक किन्हीं कारणों से उदासी की जो परत चढ़ गई है, उसे ऐसे ही छिलिए जैसे प्याज को छिला जाता है। आंसू आए तो बह जाने दीजिए। थोड़ी देर रो लें तो मन का आसमान साफ हो जाता है। यह नीला और चमकदार हो जाता है।
… आप कविता लिखिए। कहानी लिखिए, चिंतन कीजिए, लेकिन मन की भी सुनिए। देखिए आपका दिल क्या कहता है। यानी हर हाल में खुश रहिए, मुस्कुराते रहिए। अपने आसपास उन फूलों को देखिए। कैसे खिलते हैं और आपको प्रसन्न करने के बाद डाल टूट कर बिखर जाते हैं। फिर भी खिलना नहीं छोड़ते। परवाह नहीं करते इस बात की कि प्रतिदान में कुछ मिलेगा। अपनी बात का समापन करते हुए इस समय मुक्तिबोध की पंक्तियां याद आ रही हैं-
दुनिया में नाम कमाने के लिए
कभी कोई फूल नहीं खिलता।
अंत में आप सभी को अश्रुत पूर्वा की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं। हमें 80 हजार से ज्यादा पाठकों का प्यार मिला है। आप सब का शुक्रिया। नया साल मुबारक।

About the author

santwana

सशक्त नारी चेतना के स्वर अपनी कविताओं में मुखरित करने वाली डाॅ सांत्वना श्रीकांत का जन्म जून1990 में म.प्र. में हुआ है।सांत्वना श्रीकांत पेशे से एक दंत चिकित्सक हैं। इनका प्रथम काव्य-संग्रह 'स्त्री का पुरुषार्थ' नारी सामर्थ्य का क्रान्तिघोष है।

इनकी कविताएँ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं- गगनांचल, दैनिक भास्कर,जनसत्ता आदि में प्रकाशित होती रहती हैं।

साथ ही वे ashrutpurva.com जो कि साहित्य एवं जीवनकौशल से जुड़े विषयों को एक रचनात्मक मंच प्रदान करता है, की संस्थापिका एवं संचालिका हैं।

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