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नरगिस : स्त्री शक्ति और अधिकारों का मुखर स्वर

हेमलता म्हस्के II

नई दिल्ली। महिलाओं के अधिकारों के लिए विश्व भर में आंदोलन चलता आया है। कहीं कमजोर पड़ जाता है, तो कहीं स्त्रियों का स्वर मुखरित भी होता है। अपने अधिकारों के लिए दुनिया भर में महिलाओं ने कुर्बानियां दी हैं। युद्ध के दौरान सबसे पहले महिलाओं को ही शिकार बनाया जाता है। ऐसे परिदृश्य में नरगिस दुनियाभर की संघर्षशील और अपने अधिकारों के लिए आंदोलन कर रहीं महिलाओं के लिए आदर्श बन गई हंै। उन्हें नोबेल पुरस्कार मिलने से विभिन्न मुल्कों की उन महिलाओं को प्रेरणा मिली है जो घर-परिवार में या सत्ता द्वारा प्रताड़ित होती हुई चुपचाप यातनाएं सहती रहती हैं और प्रतिकार नहीं कर पाती हैं।
ओस्लो में पुरस्कार की घोषणा करते हुए नॉर्वे नोबेल समिति की अध्यक्ष बेरित रीस एंडरसन ने पिछले दिनों कहा कि यह पुरस्कार ईरान की विवादमुक्त नेता नरगिस मोहम्मदी को मान्यता देने के लिए है। उन्होंने ईरान की सरकार से अपील की है कि वह नरगिस को जेल से रिहा कर दे ताकि वह इस साल दस दिसंबर को पुरस्कार समारोह में शामिल हो सकें। नरगिस शुरू से अखबारों के लिए लिखती थीं। 1990 से ही नरगिस महिलाओं के लिए आवाज उठा रही हैं। 2003 में उन्होंने तेहरान के डिफेंडर्स आफ ह्यूमन राइट सेंटर से काम शुरू किया।
नरगिस से आम स्त्रियां भी अपनी जिजीविषा मजबूत कर सकती हैं। वे दुनिया भर की महिलाओं के लिए बेमिसाल प्रेरक व्यक्तित्व हैं। उन्हें जेल में बंद कार्यकर्ताओं की मदद करने के आरोप में पहली बार 2011 में जेल हुई थी। उन्हें जितनी यातना मिलती है उतनी ही मजबूत होती जाती हैं। अपने जेल जीवन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मैं रोज खिड़की के सामने बैठी रहती हूं। हरियाली देखती हूं। जितना ज्यादा वे मुझे प्रताड़ित करते हैं मेरी प्रिय चीजों को मुझसे दूर करते हैं, मैं उतनी ही मजबूत होती हूं। यह जंग तब तक जारी रहेगी, जब तक हम लोकतंत्र पा नहीं लेते। मुझे उससे कुछ भी कम मंजूर नहीं।
बचपन से ही संघर्षशील रही नरगिस के पिता किसान थे। मां राजनीतिक पृष्ठभूमि से थीं। साल 1979 में इस्लामी क्रांति के बाद राजशाही खत्म हुई तो उनके एक्टिविस्ट चाचा और दो भाई गिरफ्तार किए गए। इनमें से एक भाई को फांसी दे दी गई। तब नरगिस महज नौ साल की थीं। नरगिस के दिल और दिमाग पर उसका गहरा असर पड़ा। इसके बाद उन्होंने विरोध की राह चुनने का फैसला किया। कॉलेज में संगठन खड़ा कर दिया। शादी की तो एक साल अज्ञातवास में बिताना पड़ा। इन सब घटनाओं ने नरगिस को और मजबूत बना दिया। चार लोगों का यह परिवार कभी साथ नहीं रह पाया।
बच्चों और पति को नरगिस के काम पर गर्व है। वे कहते हैं यह बहुत मुश्किल है एक पति और पिता के तौर पर बच्चों के साथ रहना। मैं चाहता हूं कि नरगिस साथ रहें। उनके मिशन में हर कदम हम उनके साथ हैं। नरगिस को उनकी मां बचपन में कहा करती थी कि बेटी कुछ भी कर लेना राजनीति से दूर रहना। ईरान जैसे देश में व्यवस्था से लड़ने की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। लगता है मां की वह चेतावनी सही साबित हुई है। लंबे समय से जेल में बंद नरगिस का जीवन दुनिया भर की महिलाओं के लिए एक खामोश स्वर है।
साथी कैदियों की तकलीफ को नरगिस ने ‘वाइट टॉर्चर’ नाम की एक किताब में विस्तार से लिखा है। उन्होंने जेल को भी आंदोलन का केंद्र बना दिया है। उनके करीबी दोस्त बताते हैं कि फारसी शास्त्रीय संगीत में दक्ष नरगिस जेल के वार्ड में सभाएं करती हैं। गाने के साथ बर्तनों पर पारंपरिक धुन बजाती हैं और साथी कैदियों के साथ नृत्य भी करती हैं। उन्होंने जेल की दीवारों को लोकतंत्र और आजादी के नारों से रंग दिया था।
नरगिस ने महिलाओं के अधिकारों खासतौर पर मृत्युदंड उन्मूलन के लिए अभियान चलाया है। ईरान में उन्हें जिंदगी और आजादी आंदोलन की सबसे बुलंद आवाज माना जाता है। उन्होंने कई सुधारवादी समाचारपत्रों के लिए एक पत्रकार के रूप में काम किया और सुधार, रणनीति तथा रणनीति नामक राजनीतिक निबंधों की एक पुस्तक प्रकाशित की। साल 1999 में, उन्होंने साथी और सुधार-समर्थक पत्रकार ताघी रहमानी से शादी की। उन्हें पहली बार गिरफ्तार कर लिया गया। रहमानी 14 साल की जेल की सजा काटने के बाद 2012 में फ्रांस चले गए, जबकि मोहम्मदी ने अपना मानवाधिकार कार्य ईरान में ही जारी रखा। मोहम्मदी और रहमानी के जुड़वां बच्चे हैं।
नरगिस मोहम्मदी को पहली बार 1998 में ईरानी सरकार की आलोचना के लिए गिरफ्तार किया गया था और एक साल जेल में बिताया था। अप्रैल 2010 में, उन्हें डीएचआरसी में सदस्यता के लिए इस्लामिक रिवोल्यूशनरी कोर्ट में बुलाया गया था। उन्हें कुछ समय के लिए 50,000 अमेरिकी डॉलर की जमानत पर रिहा कर दिया गया था, लेकिन कई दिनों बाद उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और अबियन जेल में बंद कर दिया गया। हिरासत में रहने के दौरान मोहम्मदी का स्वास्थ्य गिर गया और उसे मिर्गी जैसी बीमारी हो गई, जिससे वह समय-समय पर मांसपेशियों पर नियंत्रण खोती रही। एक महीने के बाद, उसे रिहा कर दिया गया और चिकित्सा उपचार लेने की अनुमति दी गई।
जुलाई 2011 में, नरगिस मोहम्मदी पर फिर से मुकदमा चलाया गया और उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा, डीएचआरसी की सदस्यता और शासन के खिलाफ प्रचार  के खिलाफ काम करने का दोषी पाया गया। सितंबर में, 11 साल की कैद की सजा सुनाई गई। मोहम्मदी ने कहा कि उन्हें फैसले के बारे में अपने वकीलों के माध्यम से ही पता चला था और उन्हें अदालत द्वारा जारी 23 पन्नों का एक अभूतपूर्व फैसला दिया गया था जिसमें उन्होंने बार-बार मेरी मानवाधिकार गतिविधियों की तुलना शासन को गिराने के प्रयासों से की थी। मार्च 2012 में, अपील अदालत ने सजा को बरकरार रखा, हालांकि इसे घटा कर छह साल कर दिया गया।  26 अप्रैल को सजा शुरू करने के लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
अब देखना है कि नरगिस को ईरान सरकार रिहा करती है या नहीं। उन्हें सारी दुनिया एक ऐसी विराट हस्ती के रूप में देख रही है जिसकी मिसाल वे खुद हैं।

About the author

हेमलता म्हस्के

हेमलता म्हस्के महिलाओं, मजदूरों, किसानों और वंचित वर्ग के मुद्दे पर पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लिखती हैं। वे लेखन के साथ समाज सेवा के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। उन्होंने निर्धन और पिछड़े वर्ग की महिलाओं की लगातार ममद करने के साथ उनका मार्गदर्शन भी किया है। इसके लिए उन्होंने एक प्रतिष्ठान की स्थापना की। हेमलता इस समय सावित्रीबाई सेवा फाउंडेशन (पुणे) की सचिव हैं। उन्हें तिलका मांझी राष्ट्रीय सम्मान और विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय सम्मान मिल चुका है। कई संस्थाएं उन्हें पुरस्कृत कर चुकी हैं।

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