अश्रुत पूर्वा II
भारतीय मूल के मशहूर लेखक सलमान रुश्दी (75) पर न्यूयार्क में जानलेवा हमला किया गया। पुलिस के मुताबिक चौटाउक्वा इंस्टीटयूशन में हमलावर ने मंच पर मौजूद सलमान रुश्दी पर चाकू से वार किया। रुश्दी की गर्दन पर जख्म बन गया है। वहीं साक्षात्कार ले रहे पत्रकार के सिर पर हल्की चोट आई है। रूश्दी को कुछ ही देर में वहां भाषण देना था।
एक चश्मदीद के मुताबिक एक युवक ने एक के बाद एक सलमान पर दस से पंद्रह वार किए। वे वहीं गिर पड़े। अचानक किए गए इस हमले के बाद मंच पर खून के धब्बे दिखे। हमलावर युवक को फौरन काबू में कर लिया गया।
इस हादसे के बाद लेखक रुश्दी को तत्काल एअर एंबुलेंस से अस्पताल भेजा गया। उनकी हालत कैसी है, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है। पुलिस ने हमलावर को तुरंत गिरफ्तार कर लिया। उसकी उम्र करीब 25 साल बताई गई है। हमले की वजह अभी सामने नहीं आई है। सलमान की किताबों को लेकर उन्हें कई बार फतवा जारी हो चुका था। हमले को उसी पृष्ठभूमि से जोड़ कर देखा जा रहा है। इस घटना से दुनिया भर के लेखक स्तब्ध हैं।
- अपने दूसरे ही उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन के लिए उन्हें 1981 में बुकर पुरस्कार और 1983 में बेस्ट आफ द बुकर्स पुरस्कार मिला था। सलमान ने 1975 में अपनी पहला उपन्यास ग्राइमस लिखा था। द सैटेनिक वर्सेस सलमान रुश्दी का चौथा उपन्यास था। बता दें कि इस उपन्यास पर दुनिया के कई देशों में पाबंदी है।
बता दें कि सलमान रुश्दी का जन्म मुंबई में हुआ था। वे मिडनाइट्स चिल्ड्रन और द सैटेनिक वर्सेस जैसी किताबें लिखने के बाद चर्चा में आए थे। वे प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं। सैटेनिक वर्सेस को लेकर ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला रुहोल्ला खमैनी ने फतवा जारी किया था।
सलमान रुश्दी अपनी किताबों के लिए दुनिया भर में विख्यात हैं। अपने दूसरे ही उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन के लिए उन्हें 1981 में बुकर पुरस्कार और 1983 में बेस्ट आफ द बुकर्स पुरस्कार मिला था। सलमान ने 1975 में अपनी पहला उपन्यास ग्राइमस लिखा था। द सैटेनिक वर्सेस सलमान रुश्दी का चौथा उपन्यास था। बता दें कि इस उपन्यास पर दुनिया के कई देशों में पाबंदी है।
वर्ष 1988 में प्रकाशित इस उपन्यास पर काफी विवाद हुआ था। इसके लिए रुश्दी पर गंभीर आरोप लगे थे। इस किताब का शीर्षक एक विवादित परंपरा के बारे में है। इस पर सलमान रुश्दी ने अपनी किताब में बेबाक होकर लिखा था। इस किताब पर कई देशों में पाबंदी लगाई गई थी। इसके प्रकाशन के बाद ही रुश्दी को मौत की धमकियां भी मिलीं। ईरान के धार्मिक नेता खमैनी ने फतवा तक जारी कर दिया था। इस उपन्यास के जापानी अनुवादक हितोशी इगाराशी की हत्या कर दी गई। यही नहीं इतालवी अनुवादक और नार्वे के प्रकाशक पर भी हमले हुए। (इनपुट मीडिया रिपोर्ट्स)