अमनदीप गुजराल ‘विम्मी’ II
खुद से हारी होती है जब
चली आती है खिसियाई सी
आते ही झगड़ पड़ती है बिना बात…
आती है खिलखिलाती सी जब
समझ जाती हूं जीत आई है
अपने हिस्से का आसमान…।
यूं ही रूठी रहती है बेबात
जोर से चिल्लाती है कभी
कभी मुंह तकिए में गड़ा
बेमौका आंसू बहाती है,
गिनाने लगती है टीन एज में
होने वाले मूड स्विंग्स…।
पैर पटकती अचानक
आ खड़ी होती है यूं ही कभी
कहती हुई, ‘आपको जरा सी फिक्र नहीं मेरी’
और लाती है साथ शिकायतों का पुलिंदा…।
एक सांस में कह जाती है सारी बातें
प्यूबर्टी की उम्र है मम्मा समझा करो…
आपको तो यह भी नहीं पता कि पिम्पल्स
मुंह नहीं धोने के कारण नहीं,
हॉर्मोन चेंज के कारण आते हैं…।
बड़बड़ाती सी कहती है कभी
बहुत खुशनसीब हो आप
जो मिली है मुझ सी बच्ची…
फलाने जैसी मिलती न,
ह्यूमर खो जाता जिंदगी से…
ओहो! गलतियां करती नहीं हूं मम्मा
इस उम्र में हो जाती हैं… समझा करो न!
बहुत प्यार आता है जब कभी अचानक
पूछ बैठती है मेरे चुप रहने की वजह
कहती है आपको छोड़ कर
नहीं जाऊंगी कभी भी, कहीं भी…।
एक लंबी सांस ले दोहराती हूं
वही जो दोहराते आए हैं सब
उसे नहीं पता
राजाओं महाराजाओं के
वृहद आंगन भी पड़ गए छोटे
लड़कियों की बढ़ती लंबाई से
तुम क्या जानो बिटिया
तुम्हारे बड़े होने की खबर
हमसे पहले जमाने को लगी…।
चिड़िया को उड़ना होता है,
उसे उड़ना भी चाहिए
खुद के भरोसे, अपने आसमान में
पर रखनी चाहिए जरूरत भर जमीन
उड़ान के लिए …।
अब समझाना चाहती हूं उसे
भरोसा रखना अपनी उड़ान पर
और उससे भी ज्यादा भरोसा
अपने पंखों पर, मजबूती अपने पैरों में…।
मेरी बच्चियों
उड़ना फलक तक
साथ ही बचा कर रखना वो जमीन
जिसकी जरूरत हमेशा रहती है उड़ने से पहले।
तस्वीर- प्रतीकात्मक और गूगल से साभार