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फैसले ऐसी भाषा में हों जो वादियों को समझ आए : सर्वोच्च आदालत

अश्रुतपूर्वा II

पिछले दिनों देश की सर्वोच्च अदालत की एक महत्त्वपूर्ण टिप्पणी से उन वादकारियों को राहत मिल सकती है जो अदालतों के जटिल अंग्रेजी में दिए फैसले को समझ नहीं पाते और इसके लिए अपने वकील की मदद लेनी पड़ती है। शीर्ष अदालत ने संवैधानिक अदालतों के अपने फैसले वादकारियों के अनुकूल भाषा में तैयार करने की सलाह देते हुए कहा है कि न्यायिक लेखन का उद्देश्य जटिल भाषा की आड़ में भ्रमित करना या उलझाना नहीं है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि कई फैसले में कानून और तथ्यों के जटिल प्रश्नों का निर्धारण किया जाता है।

दरअसल, शीर्ष अदालत हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। न्यायमूर्तिडीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने जटिल मामलों सहित मुकदमों के निर्णय लिखते समय संवैधानिक अदालतों के अपनाए जाने वाले सिद्धांतों को निर्धारित किया। पीठ ने एक कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई से संबंधित मामले में भारतीय स्टेट बैंक और अन्य के द्वारा दायर अपील पर फैसला सुनाया।

  • शीर्ष न्यायालय ने कहा, हिमाचल प्रदेश उच्च प्रदेश न्यायालय की खंडपीठ का निर्णय समझ से बाहर है। इस अदालत को अपील की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के निर्णय में ‘समझ से परे’ भाषा को समझने के लिए खुद जूझना पड़ा है। एक वादी के लिए तो फैसले की भाषा और कठिन हो जाएगी। कानून की दृष्टि से अप्रशिक्षित वादी का सामना ऐसी भाषा से होता है जिसे समकालीन अभिव्यक्ति में सुना, लिखा बोला या बोला नहीं जाता है।

इसी संदर्भ में शीर्ष न्यायालय ने कहा, हिमाचल प्रदेश उच्च प्रदेश न्यायालय की खंडपीठ का निर्णय समझ से बाहर है। इस अदालत को अपील की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के निर्णय में ‘समझ से परे’ भाषा को समझने के लिए खुद जूझना पड़ा है। एक वादी के लिए तो फैसले की भाषा और कठिन हो जाएगी। कानून की दृष्टि से अप्रशिक्षित वादी का सामना ऐसी भाषा से होता है जिसे समकालीन अभिव्यक्ति में सुना, लिखा बोला या बोला नहीं जाता है।

शीर्ष न्यायालय की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के फैसले भविष्य की पीठों का मार्गदर्शन करने के लिए एक मिसाल के तौर पर इस्तेमाल होते हैं। अदालती फैसले उन लोगों को जरूर समझ में आना चाहिए, जिनका जीवन उनसे प्रभावित होता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायिक लेखन का उद्देश्य जटिल भाषा की आड़ में भ्रमित करना या उलझाना नहीं है।  (मीडिया की खबरों से) 

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