मनस्वी अपर्णा II
आज मिला है मौका तो फिर लाजिÞम है जज्बात लिखूं
बोलो तो झूठा सच लिख दूं या फिर अपनी बात लिखूं
//१//
तुमको तो मालूम है सब कुछ, पर्दा तुमसे कोई नहीं
और बताओ इससे बढ़ कर क्या अपने हालात लिखूं
//२//
अपनी-अपनी बाजी तो हम दोनों हार चुके हैं फिर
बोलो किसकी जीत मैं लिख दूं, बोलो किसकी मात लिखूं
//३//
क्या हूं मैं लिखना है मुझको मुश्किल में हूं क्या लिक्खूं
अपने जिस्म का नक्शा लिक्खूं या फिर अपनी जात लिखूं
//४//
आसेब मुसलसल जारी है ये दौर नहीं रुकने वाला
कितनी बार मुसीबत लिक्खूं औ कितने सदमात लिखूं
//५//
भर जाता है बौनेपन का इक अहसास कहीं मुझमें
इस कुदरत के आगे अब, मैं क्या अपनी औकात लिखूं
//६//
सुख-दुख दोनों ही दिखते हैं, तो उलझी हूं उलझन में
तुमसे जो पाया है उसको सजा लिखूं, सौगात लिखूं
//७//