जीवन कौशल

फिर से जीवन का संदेश देने आए गणेश

संजय स्वतंत्र II

गणेश उत्सव की धूम है। गणेश जी घरों में विराज चुके हैं, लेकिन जनमानस में तो सदियों से वे विराजमान हैं। हमारी संस्कृति में उनका लोकमंगल रूप है। गणेश हमारी सभी बाधाओं को दूर करेंगे, यह भावना सदैव हमसब के मन में रहती है। यही वजह है कि कोई भी कारज हो, सबसे पहले हम उनकी ओर ही देखते हैं। उन्हें ही पूजते हैं। पीढ़ियां वदल गईं। हमारी संस्कृति पर दूसरी संस्कृतियों की छाया भी पड़ी, मगर हमारे संस्कार नहीं बदले तो इसके पीछे गणेश जी ही हैं। वे लोक के देवता हैं। वे जहां भी रहेंगे, वहां लोक उत्सव होगा। वे समता का संदेश देते हैं कि न कोई छोटा है न कोई बड़ा।

सहयोग और सौहार्द हम भारतीयों की ही नहींं, मनुष्यों की भी मूल भावना है। इस भावना को गणेश जी हमेशा मजबूत करते आए हैं। वे वेद व्यास के कहने पर बैठ कर लगातार महाभारत लिखते हैं। सहयोग की इस भावना को वे इतने उच्च स्तर पर ले जाते हैं कि यह जन-जन के लिए लोकमंगलकारी बन जाती है। गणपति उत्सव की सार्थकता को महसूस करने के लिए इसे आज समझने की जरूरत है। सभी देवों में प्रथम आराध्य और  धर्मों तथा सीमाओं से परे गणेश जी से नई पीढ़ी बहुत कुछ सीख सकती है।

उनसे मैंने तीन चीजें सीखी हैं। माता-पिता की सेवा, एकाग्र होकर काम करना और मैं जैसा भी हूं अच्छा हूं। मेरा मित्र या सहयोगी जैसा भी है, वह अच्छा है उसको उसी रूप में स्वीकार करता हूं और उनके सहयोग से काम करता हूं। थोड़ा सा प्यार, थोड़ी सी खुशी… थोड़ा सा सम्मान मिल जाए इतना ही काफी है। गणेश जी थोड़े में खुश रहना और जो कुछ भी है उससे अपने काम की शुरुआत करना सिखाते हैं। इतने भर से आप का कार्य निरंतर दोगुना चौगुना होता जाता है। जब आप बड़े आदमी बन जाते हैं तो छोटों को मत भूूूलिए, क्योंकि आप उनकी वजह से बड़े बने हैं। आप हमेशा के लिए बड़े नहीं, एक दिन  आप  से बड़ा भी कोई आ जाएगा।  

विघ्नहर्ता की मंगलमूरत को मन में बसा कर देखिए आप महसूस करेंगे कि उनका बड़ा सिर हमें कुछ बड़ा सोचने की सीख देता है। उनके कानों को देखिए। वे इस बात का संदेश देते हैं कि हमेशा सतर्क रहो और अच्छी बातों को ध्यान से सुनो। उसे आत्मसात करो। सीखो जानो। अपना ज्ञान बढ़ाओ। आगे बढ़ो। विवेक से फैसला करो।

फोटो साभार: गूगल
  • वे इस बात का संदेश देते हैं कि हमेशा सतर्क रहो और अच्छी बातों को ध्यान से सुनो। अपना ज्ञान बढ़ाओ। विवेक से फैसला करो। गणेश जी का पेट खुशहाली का प्रतीक है।  हम अकसर किसी से कहते हैं कि उसका पेट बड़ा है। यानी वह बातों को पचा जाता है, यह अच्छी बात है। हमें भी कुछ बातों को पचा जाना चाहिए।

गणेश जी का पेट खुशहाली का प्रतीक है। एक खास बात और। हम अकसर किसी से कहते हैं कि उसका पेट बड़ा है। यानी वह बातों को पचा जाता है, यह अच्छी बात है। हमें भी कुछ बातों को पचा जाना चाहिए। किसी की कोई बात दूसरों से कहते नहीं फिरना चाहिए। जीवन में बहुत सी बातें गोपनीय रखनी पड़ती है। इसी तरह गणेशजी की हमेशा हिलती-डुलती सूंढ़ हमें निरंतर जागरूक रहने और काम करते रहने का संदेश देती है। क्योंकि कर्म ही मनुष्य को सक्रिय रखता है। जागरूकता उसे चेतना संपन्न बनाए रखती है।

गणपति की आंखों में झांक कर देखिए। चिंतनशील उनकी आंखों में कितना तेज हैं। वे बताती हैं कि इस दुनिया में बहुत सारी चीजें आपका ध्यान बंटाएंगी, मगर आपको अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्र रहना है। यही नहीं हर मनुष्य और हर वस्तु को देखने परखने की कला भी आनी चाहिए। ऐसा करने पर आप जीवन में कभी धोखा नहीं खाएंगे। यही नहीं गणेशजी ने हमें हर चीज का सदुपयोग करना सिखाया है। एक कथा पढ़ने को मिलती है कि परशुराम से युद्ध में उनका एक दांत टूट गया था। जानते हैं? उस टूटे दांत को लेखनी बना कर गणेश जी ने पूरा महाभारत लिख दिया। यानी सीख यही कि किसी भी चीज का उपयोग करना हमें आना चाहिए। एक दंत दयावंत चार भुुजाधारी… यानी गणेश जी ने टूटे हुए अपने एकदंत से यही तो सिखाया है।

भाद्र मास के शुक्ल पक्ष में हम गणेश उत्सव मनाते हैं। उनके जन्म की रोचक कथा है। यह भी कहते हैं कि वेद व्यास जी ने गणेश चतुर्थी से महाभारत की कथा सुनाई थी और गणपति ने लगातार दस दिन तक बैठ कर बिना थके बिना रुके अक्षरश: लिखा था। कथा यह भी है कि लगातार बैठ कर लिखने के दौरान गणेश जी के शरीर का तापमान न बढ़े इसके लिए व्यास जी ने उन पर सोंधी मिट्टी का लेप किया। मगर यह लेप सूखने के कारण उनकी देह अकड़ गई और मिट्टी झरने लगी तो गणेश जी को सरोवर में उतारा गया। यह विसर्जन की आदि परंपरा है। हमें इस जीवन दर्शन से समझना चाहिए कि गणेश जी की निर्मिति पार्वती ने मैल और मिट्टी से की। मनुष्यों का तन भी मिट्टी का ही माना जाता है। माटी की देह माटी में मिल जाना।

विसर्जन के लिए जाते समय गणेश हमेशा यही संदेश देते हैं कि अपने अहंकार और मोह-माया का विसर्जन करो। इस तरह पंच तत्वों में से एक जल में विसर्जित होकर वे निराकार हो जाते हैं। चतुर्थी को विराजने वाले गणेश जी पीछे छोड़ जाते हैं अपने प्रिय मोदक और दे जाते हैं संदेश- खुश रहना। सबसे मृदुल व्यवहार करना। गणेश जी अनंत चतुदर्शी को हम सब से विदा लेते हैं लेकिन वे सदैव हमारे दिल में ही रहते हैं। कभी उन्हें दिल से पुकारिए। आपके विघ्न हरने वे जरूर आएंगे। तभी तो वे हमारे विघ्न विनायक हैं। 

   

About the author

संजय स्वतंत्र

बिहार के बाढ़ जिले में जन्मे और बालपन से दिल्ली में पले-बढ़े संजय स्वतंत्र ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से पढ़ाई की है। स्नातकोत्तर की शिक्षा पूरी करने के बाद एमफिल को अधबीच में छोड़ वे इंडियन एक्सप्रेस समूह में शामिल हुए। समूह के प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक जनसत्ता में प्रशिक्षु के तौर पर नौकरी शुरू की। करीब तीन दशक से हिंदी पत्रकारिता करते हुए हुए उन्होंने मीडिया को बाजार बनते और देश तथा दिल्ली की राजनीति एवं समाज को बदलते हुए देखा है। खबरों से सरोकार रखने वाले संजय अपने लेखन में सामाजिक संवेदना को बचाने और स्त्री चेतना को स्वर देने के लिए जाने जाते हैं। उनकी चर्चित द लास्ट कोच शृंखला जिंदगी का कैनवास हैं। इसके माध्यम से वे न केवल आम आदमी की जिंदगी को टटोलते हैं बल्कि मानवीय संबंधों में आ रहे बदलावों को अपनी कहानियों में बखूबी प्रस्तुत करते हैं। संजय की रचनाएं देश के सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।

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