लिली मित्रा II
थोड़ा ‘सा’ ये, थोड़ा सा ‘वो’, थोड़ा सा ‘ऐसे’, थोड़ा सा’ वैसे’ और फिर…जरा सा सीधे हो जा बालमा म्हरो पल्लो लटके जी म्हरो पल्लो लटके..। क्या सब कुछ इतना आसान होता है जितना दिख रहा होता है? खुद से प्रश्न करने पर कितना ईमानदार जवाब हम खुद को दे पाते हैं, यही निर्धारित करता है आपका सामर्थ्य, आपकी दृढ़ इच्छाशक्ति। आप क्या साधना चाहते हैं पहले यह तय करना है, साधना-मार्ग में आपको क्या-क्या साधन चाहिए ? और सबसे अधिक महत्वपूर्ण आप खुद को कितना खपा सकते हैं? आप अपने साथ-साथ अपने साथियों के कौशल को उनकी अच्छाइयों को कितना पहचान पाते हैं? बुराइयां देखना आसान है पर अच्छे गुण देख पाना आपके दृष्टिकोण के सौन्दर्यबोध का परिचायक है। प्रेरणा एवं प्रेरक व्यक्तित्व हमारे आस-पास मौजूद होते हैं लेकिन उनके जैसा बनने के लिए हमें पूरे धैर्य के साथ उनको सुनना आना चाहिए। उन्होने कितना परिश्रम किया है लक्ष्य को पानें में, कितनी यातनाएं और दर्द झेले हैं, क्या बहुमूल्य खोया है कुछ अमूल्य पाने के लिए।परदे के पीछे का दृश्य पथरीला होता है मंच पर चमचमाती आभा उन पत्थरों पर रगड़ खाकर उस मंत्रमुग्ध कर देनें वाली छवि का निर्माण करती है। जिसे देखने वाला उसी क्षण ये सोच लेता है हमें भी ऐसे ही बनना है। बनिए और हम बन भी सकते हैं पर इसके लिए हमें खुद पर काम करना है। पूरी लगन के साथ दृढ़ संकल्प के साथ।
आज जब हम हज़ारों लाखों करोड़ों मुखों को यह बोलते सुनते हैं- ‘खुद के लिए करो’, खुद को खुश रखो, ‘जो तुम्हे अच्छा लगता है वो करो’… तब इन बातों का यह अर्थ कभी भी नहीं होता कि- हम अपने से जुड़े लोगों की उपेक्षा करें या उनके हितों का अनदेखा करने लगें, खुद का किनारा काट लें बल्कि इसके सही मायनें होते हैं कि पहले स्वयं को मजबूत बनाएं ताकि आप अपनों को सुरक्षा प्रदान कर सकें, स्वयं को खुश रखें ताकि अपनों को खुशी दे सकें, अपने आप को ज़िन्दादिल बनाएं ताकि आपसे जुड़े या आपसे जुड़ने वाला हर इंसान- ‘ज़िन्दगी वाक़ई खूबसूरत है’ यह अहसास महसूस सके। और एक बहुत बहुत बहुत ज़रूरी बात इन्हे मात्र ‘जुमले’ के तौर पर मत इस्तेमाल कीजिए। उतार लीजिए अपनी रगों में … अपनी जीवनशैली बना डालिए। बोलिए कम करिए ज्यादा। गीत के बोल याद आ गए-
काम ज्यादा बातें कम
मेहनत से है शाने वतन….
आप पहले अपनी शान बढ़ाने पर जुट जाइए देखिएगा धीरे-धीरे आपके परिवार की,परिवार से समाज की और समाज से देश की देश से विश्व की शान बढ़ जाएगी ‘rule the world’ इसी लम्बी यात्रा का ध्वज है जिसे आप साध सकते हैं।
- क्या सब कुछ इतना आसान होता है जितना दिख रहा होता है? खुद से प्रश्न करने पर कितना ईमानदार जवाब हम खुद को दे पाते हैं, यही निर्धारित करता है आपका सामर्थ्य, आपकी दृढ़ इच्छाशक्ति। आप क्या साधना चाहते हैं पहले यह तय करना है, साधना-मार्ग में आपको क्या-क्या साधन चाहिए ? और सबसे अधिक महत्वपूर्ण आप खुद को कितना खपा सकते हैं?
अब अगला प्रश्न यह उठता है- ‘क्या करें?’ कोई बड़ा काम करने की सोच में अपने आपको इधर-उधर भटकाने में समय मत गवाइए। कोई भी काम ना तो बड़ा होता है न ही छोटा होता है उसे आदमी परिश्रम और जुनून से बड़ा बना देता है। अपने अंदर झांकिए, आपके अंदर के कौशल को तलाशिए। और यह कुछ भी हो सकता है- खाना पकाना, नृत्य, लेखन, संगीत, वाचन, वृक्षारोपण, पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर किए जाने वाले तमाम उपाय, सिलाई-कढाई, बुनाई, रंगाई शारीरिक क्षमता, खेल, पठन, पाठन, मैनेजमेंट के गुण कुछ भी हो सकता है। जो पहली ज़रूरत होती है वो है इधर-उधर से मत बीनिए खुद के अंदर जो दबा है उसे उभारिए। हो सकता है वो कौशल उतना पाॅलिश्ड ना हो उसे तराशने की ज़रूरत हो, तो उसे तराशने पर एकचित्त होइए। ध्यान को एकाग्र कीजिए, भटकने पर नियंत्रण करना सीखिए।
अपने ठोस एवं सम्पूर्ण आकार में दिखने वाली वस्तु, सफल व्यक्तित्व के रूप में खड़े व्यक्ति के पीछे उसके सूक्ष्म से सूक्ष्म और जटिल से जटिल कार्यप्रणाली का भी विश्लेषण कीजिए केवल फैक्ट्री से निकल कर आपके हाथ में आई चमचमाती पैकिंग को देखकर अंधा नही होना है। सब एक बहुत लम्बी साधना,समय,और एकचित्तता,इच्छाशक्ति, सामर्थ्य का परिणाम होता है। याद रखिए ‘क्विक रेसिपिज़/झटपट खाना केवल छोटी-छोटी भूख को मिटाती हैं। आत्मतृप्ति के लिए पकाए जाने वाले भोजन के लिए बनाने वाले को तपस्या करनी पड़ती है। झटपट कुछ भी नही मिलता मिलता भी है तो स्थायी नही होता। अभिव्यक्ति की भरपूर आज़ादी के इस युग में ना तो मंचों का अभाव है ना ही अपने-अपने भोंपू ढोल नगाड़े बजाने वालों का अभाव। यदि सही मायने में विश्लेषण करें तो अभाव है जुबान कम चलाने की अपने हाथ-पांव चलाने को प्राथमिकता देने की। आवश्यकता है अपने प्रति ईमानदार होने का ना कि दूसरे ने क्या किया इस मुद्दे को उछाल कर लोकजनों का ध्यान भटकाने का। खुद की ताकत को पहचानिए उसे पल्लवित कीजिए, उसे आगे बढ़ाइए खुद को विकसित कीजिए आपका परिवेश स्वतः ही विकसित होता दिखेगा, इस आत्मविश्वास को उजागर रखिए यही आपका ‘ब्रांड’ बन जाएगा आपका अपना अंदाज़ अपना ‘स्टाइल’।