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दक्षिण अफ्रीका में नस्लभेद विरोधी आंदोलन में उर्दू ने भी निभाई थी भूमिका

अश्रुतपूर्वा II

नई दिल्ली। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उर्दू साहित्य की भूमिका को कौन भूल सकता है, मगर कम लोग जानते हैं कि उर्दू शायरी ने दक्षिण अफ्रीका में भी नस्लभेद विरोधी आंदोलनों में बहुत बड़ा योगदान दिया है। जोहानिसबर्ग से मिल रही खबरों के मुताबिक दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन में उर्दू शायरी की भूमिका पर पिछले दिनों विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। उर्दू को प्रोत्साहित करने वाले संगठन ‘बज्म ए अदब आॅफ बेनोनी’ और सलूजी परिवार के साझा कार्यक्रम में कई स्थानीय और दूसरे देशों के शायरों ने शेर पढ़े।

बता दें कि सलूजी परिवार की चार पीढ़ियां स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल रहीं। आयोजकों में से एक शिरीन सलूजी के मुताबिक उर्दू की पैदाइश भारत की है लेकिन यह केवल भारतीयों की ही नहीं है। यह पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा है और यह केवल पाकिस्तानियों की भी नहीं है। उन्होंने कहा, दक्षिण अफ्रीका के नस्लभेद विरोधी अभियान में उर्दू शायरी हमेशा से मनोबल बढ़ाती रही है और हम उसी का जश्न मना रहे हैं

देशभक्ति गीत ‘पर न झंडा ये नीचे झुकाना’ दक्षिण अफ्रीका में भारतीय कांग्रेस आंदोलन की बैठकों में गाया जाता था। ऐसा माना जाता है कि यह गीत 1920 के दशक में भारत के स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा गाया जाता था। दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन में यह गीत हर देशभक्त की जुबान पर होता था और इसने कई नायकों को प्रेरित किया।

सलूजी ने बताया कि कैसे देशभक्ति गीत ‘पर न झंडा ये नीचे झुकाना’ दक्षिण अफ्रीका में भारतीय कांग्रेस आंदोलन की बैठकों में गाया जाता था। ऐसा माना जाता है कि यह गीत 1920 के दशक में भारत के स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा गाया जाता था। उनके मुताबिक दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन में यह गीत हर देशभक्त की जुबान पर होता था और इसने कई नायकों को प्रेरित किया।

 शोधकर्ता रशीद सीदत के मुताबिक वे और कुछ अन्य लोग दक्षिण अफ्रीकी उर्दू शायरों की विरासत को संजोने में जुटे हुए हैं। (मीडिया की खबरों पर आधारित प्रस्तुति)

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