अश्रुतपूर्वा II
करवा चौथ पर लाखों स्त्रियां अपने पतियों की दीघार्यु के लिए व्रत रखेंगी। युवतियां भी पीछे नहीं रहने वाली हैं। मगर कितने पति और पुरुष मित्र अपनी पत्नी या प्रिया के लिए व्रत रखेंगे, मालूम नहीं। भारतीय परंपरा में यह है ही नहीं। लड़कों को यह संस्कार दिया ही नहीं गया कि अगर कोई लड़की तुमसे प्रेम करे, तो उसके लिए तुम भी त्याग और समर्पण करना सीखो। उसकी मंगलकामना के लिए व्रत रखो।
पूरे उत्तर भारत खासकर पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की महिलाएं करवा चौथ का व्रत रख खुद को सौभाग्यवती समझती हैं। भारतीय समाज ने उन्हें इसी संस्कार में ढाला है। क्या ही अच्छा होता कि पुरुष भी उनके साथ व्रत रख कर अपने आप को सौभाग्यशाली समझते। प्यार को ईश्वरीय सौगात मानते। यह अजीब बात है कि पति या पुरुष मित्र प्यार करे या न करे, युवतियां अपनी भावनाओं का इजहार जरूर करती हैं। मगर एक दिन का प्यार क्या साल भर लबालब रहता है उनके दिलों में? कई जन्मों का साथ निभाने का संकल्प करने वाले दंपति क्या एक जनम का प्यार भी निभा पाते हैं। शायद नहीं।
आज बाजार में सुबह से चहल-पहल है। दुकानें सज गई हैं। देश में बाजारीकरण के बाद जिंदगी में जो बनावटीपन आया है, उसने स्त्री-पुरुष संबंधों को भी खोखला कर दिया है। जीवन के गागर में कुछ नहीं बचा। अब न प्रेम की ललक है और न संबंधों में गर्मजोशी। थोड़ा बहुत जो बचा था, वह इन शोरूम और दुकानों में गुम हो गया है। सात जन्मों तक के सुहाग की चाह में लड़कियां व्रत तो रखेंगीं, मगर सच्चा प्यार कहां से लाएंगीं। जिसकी दरकार उन्हें हर पल रहती है।
अभी कई सवाल घुमड़ रहे हैं मन में, उन महिलाओं के लिए जो सरगी के बाद अपना व्रत शुरू करने वाली हैं। और जिन्हें चांद दिखने के बाद उपवास तोड़ना है। क्या यह महंगे उपहारों के मिलने के बाद टूटेगा या चांद में अपने पति को निहारते हुए और उनकी आंखों में झांक प्यार के दो घूंट पीते हुए व्रत खुलेगा। क्या पता?
करवा चौथ की एक कथा अनुसार वीरवती का सुहाग मृत्यु के बाद वापस मिल गया था, लेकिन आज के इस भौतिकवादी दौर में जहां पुरुष अपनी इच्छा पूर्ति तक सीमित हो गए हों और स्त्रियां अपनी चाहतों के बियावान में भटक रही हों, वहां सच्चे प्रेम का मोल कहां! चाहे कितने व्रत रख लें, जीवन में प्रेम का फूल खिलना मुश्किल है। प्रेम सुगंध की तलाश में वह हमेशा भटकती रहेंगी। उस मृग की तरह जो कस्तूरी के लिए बेचैन रहता है मगर वास्तव में वह तो उसके भीतर ही होता है।
… तो कुंआरी युवतियों ने इसलिए व्रत रखा है कि उन्हें मनचाहा जीवन साथी मिलेगा। उन्होंने आज अपने हाथों में मेंहदी रचाई है। इसका रंग जितना निखरेगा, उनके मन में उतना ही उमंग भरेगा। इस उम्मीद में कि भावी साथी से उन्हें सच्चा प्यार मिलेगा। दिल्ली, मुंबई और कोलकाता ही नहीं, जयपुर, पटना से लेकर लखनऊ, चंडीगढ़ और भोपाल तक की लड़कियां उपवास कर रही हैं, तो इसलिए कि उन्हें अपना प्यारा सुहाग चाहिए, एक प्यारा मित्र चाहिए,जो उनकी उम्मीदों से भरपूर हो। जो उनकी भावनाओं को समझे। प्रेम के देवता…..काश कि ऐसा ही हो।
बाजार से लौट आया हूं और अब मुझे दफ्तर निकलना है। दोपहर हो गई है। मैं स्टाप पर खड़ा हूं। चांद मुझे हर साल दगा दे जाता है। शुक्र है मेट्रो अमूमन दगा नहीं देती। … बैटरी रिक्शा अभी-अभी सामने आकर रुका है। चालक सीट पर बैठी उस युवती ने आवाज लगाई है- सर, मेट्रो स्टेशन नहीं जाना क्या? हां-हां क्यों नहीं। यह वही है जो मुझे हाल में मिली थी। आज इसने नई टॉप और जींस पहनी है। इसकी कलाई निखर गई है मेंहदी के रंग से। बेहद खुश दिख रही है। मैंने पूछा- क्या तुम भी……..? मेरा सवाल पूरा भी नहीं हुआ कि उसने मुझे रोकते हुए कहा- हां सर, मैं भी। एक दोस्त है मेरा। उसके लिए करवा चौथ कर रही हूं।
सचमुच इस युवती में गजब का आत्मविश्वास है। कुछ करना है जीवन में। फिर भी कोई मनमीत तो चाहिए न दुख-सुख बांटने के लिए। यों यह निजी मामला है। कौन है वह, जिससे यह प्यार करती है। मुझे पूछना भी नहीं। लेकिन एक सवाल उठा मन में, तो पूछ ही लिया- तुमने करवा चौथ रखा है तो क्या वो भी…? हां सर, वह भी व्रत पर है मेरे लिए। कहता है तेरी कामयाबी के लिए व्रत रख रहा हूं। अच्छा लगता है सर, जब वह मेरे लिए इतना सोचता है। इसलिए आज मैंने करवा चौथ रखा है उसके लिए। उसने चहक कर कहा। कोई दो राय नहीं कि दोनों के संबंधों में बेहद मिठास है। सच है, जहां दो मीठे बोल हों, वहां हर रोज करवा चौथ है। स्त्री-पुरुष संबंधों में मिठास का ही दूसरा रूप है- करवा चौथ। एक दूसरे के प्रति सुखद अहसास ही तो प्रेम है।
… मेट्रो स्टेशन आ गया है। रिक्शे से उतर रहा हूं। वह मुस्कुराते हुए कह रही है- सर, कल भी मिलेंगे न? …स्टेशन की सीढ़ियां चढ़ते हुए सोच रहा हूं कि यह लड़की खुशनसीब है या उसका दोस्त? या शायद दोनों ही। सच्चे प्रेम की तलाश में इस लड़की को भटकने की जरूरत नहीं। प्यार की कस्तूरी तो उसके भीतर ही है।
प्लेटफार्म पर कई युवा दंपति मेट्रो का इंतजार कर रहे हैं। कई युवतियां आज शृंगार कर के निकली हैं। अब त्योहारों पर युवा घरों में नहीं पड़े रहते। वे बाजार जाते हैं। वे खरीदारी करें या न करें, अपनी उमंगों के कई रंग घोल देते हैं। करवा चौथ और वेलैंटाइन डे जैसे मौके पर यह खूब दिखता है। … लीजिए मेट्रो के आने की घोषणा हो रही है।
…आठ कोच वाली मेट्रो के आखिरी कोच में सवार हो रहा हूं। सीट मिल गई है मुझे। मेरे ठीक बगल वाली सीट पर अभी-अभी एक युवती आकर बैठ गई है। मैं गौर नहीं करता, पर भीनी खुशबू ने मेरा ध्यान खींच लिया है। उसके दमकते चेहरे पर शालीन मेकअप है। हरी चूड़ियों से गोरी कलाइयां सजी हैं। मेंहदी के रंग ने तो चार चांद लगा दिए हैं।
मेट्रो चल पड़ी है। सहसा उसके मोबाइल फोन का स्क्रीन चमक उठा। गुलाबी परिधान में सजी युवती कॉल रिसीव करते हुए खिल उठी है-कहां हो तुम? मैं राजीव चौक पहुंच रही हूं। तुम सीपी आ रहे हो न? उसने एक साथ कई सवाल पूछे। उधर से जो जवाब मिला है, जाहिर है कोई सकारात्मक नहीं है। क्योंकि युवती के चेहरे की मुस्कान मंद पड़ गई है। ऐसे जैसे खिला गुलाब मरझा गया हो। उसके मित्र ने क्या कहा होगा…?
युवती उसे समझा रही है-तुम क्यों नहीं आओगे। आज मैंने तुम्हारे लिए व्रत रखा है। तुम नहीं आओगे, तो क्या करूंगी आकर। तुम परेशान क्यों हो? सब ठीक हो जाएगा। तुम चिंता मत करो। जीवन में ये सब चलता रहता है। … युवती अपने मित्र की किसी बात पर चौंक गई है- क्या-क्या…अरे बाबा, मुझे नहीं चाहिए कोई गिफ्ट-विफ्ट, समझे। और हां, तुमने भी तो मेरे लिए व्रत रखा है। फिर क्यों संकोच कर रहे थे आने से। सीधे पहुंचो सीपी। नहीं आए तो फिर सोच लो।
मेट्रो अपनी पूरी रफ्तार में है। कश्मीरी गेट आने की उद्घोषणा हो रही है। मित्र से युवती की बातें खत्म नहीं हुई हैं। मगर अब उसके चेहरे से उदासी की परत उतर रही है। उसने मित्र की जिद तोड़ दी है। अब कोई गुस्सा नहीं, कोई नाराजगी नहीं। सही है, जहां आपसी समझ हो, जहां प्यार के दो मीठे बोल हों, वहां हर रोज करवा चौथ है। हमारे पड़ोसी भाटिया दंपति आज यह कह रहे थे तो लगा उनकी बात में दम है।
युवती उसकी बातों से सहमत है-अच्छा थोड़ी देर बैठ कर चले जाना। मम्मी का ध्यान रखना। वो बहुत बीमार हैं। तुम्हें अपने सामने देख लूंगी तो मेरा आधा व्रत पूरा हो जाएगा। फिर तुम्हें याद करते हुए चांद में तुम्हारे चेहरे को निहार लूंगी। आज की सेल्फी वाट्सऐप पर भेज देना समझे।
युवती का चेहरा फिर गुलाबी हो उठा है। उसने कहा- हां, तो तुम आ रहे हो। अब कोई बहाना नहीं। वहीं खड़े रहना, जहां हम मिलते हैं। ओके… बस राजीव चौक पहुंचने ही वाली हूं। बाय……। बात खत्म हो गई है उसकी।
एक तरफ करवा चौथ और दूसरी तरफ पिया मिलन की आस। उसकी आंखें नम हो उठी हैं। तभी युवती से कुछ दूर बैठे एक युवक के मोबाइल पर यह गीत बज उठा है-
तुम मेरे हो, इस पल मेरे हो
कल शायद ये आलम न रहे
कुछ ऐसा हो, तुम-तुम न रहो
कुछ ऐसा हो, हम-हम न रहें
ये रास्ते अलग हो जाएं
चलते-चलते हम खो जाएं…
मैं फिर भी तुमको चाहूंगी
मैं फिर भी तुम को चाहूंगी…
गीत शहद सा उतर रहा है दिल में। … उद्घोषणा हो रही है-अगला स्टेशन राजीव चौक है। वह मुझसे पहले ही सीट से उठ गई है। उसकी बेसब्री को उसके चेहरे पर पढ़ रहा हूं। उसकी आंखें छलक उठी हैं। कोई देख न ले। इसलिए वह अपने आंसुओं को खुद ही चुरा लेना चाहती है। दरवाजे खुल गए हैं। मैं उसे जाते हुए देख रहा हूं। लग रहा है मानो तारों में सजी धरती अपने चांद से मिलने चली जा रही हो।
आज के इस भौतिकवादी दौर में जहां पुरुष अपनी इच्छा पूर्ति तक सीमित हो गए हों और स्त्रियां अपनी चाहतों के बियावान में भटक रही हों, वहां सच्चे प्रेम का मोल कहां! चाहे कितने व्रत रख लें, जीवन में प्रेम का फूल खिलना मुश्किल है। प्रेम सुगंध की तलाश में वह हमेशा भटकती रहेंगी। उस मृग की तरह जो कस्तूरी के लिए बेचैन रहता है मगर वास्तव में वह तो उसके भीतर ही होता है।
मैं अगली मेट्रो में सवार होने के लिए प्लेटफार्म नंबर तीन के आखिरी छोर पर पहुंच गया हूं। आज यहां भी खासी चहल-पहल है। पहले से कहीं ज्यादा उमंग से भरपूर। युवा दंपती अपने घर लौटते हुए दिख रहे हैं। चटख परिधान और डार्क मेकअप में लड़कियों ने अपने मित्रों पर जादू चला दिया है। वे बस उन्हें ही देखते हैं। आज जादू की झप्पियां कुछ ज्यादा ही बरस रही हैं उन पर। सार्वजनिक जगह का कोई संकोच नहीं। उनमें आत्मीयता ही दिखती है, उन खास पलों में।
डिस्प्ले पैनल पर नोएडा सिटी सेंटर की मेट्रो आने की सूचना दे दी गई है। अभी तीन मिनट बाकी हैं। इस बीच एक युवा दंपति ने मेरा ध्यान खींच लिया है। ये संभवत: मजदूरी करते हैं। पति के परिधानों से तो यही लग रहा है। पत्नी ने आज माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी लगाई है। उसके हाथों में लाल चमकदार चूड़ियां हैं। लाल साड़ी में उसका सौंदर्य खिल उठा है। उड़हुल के लाल फूल सी खिली इस यौवना ने अपने पति के कंधे पर अपना एक हाथ रखा है, तो दूसरे हाथ से उसने गोद में नन्हीं सी बच्ची ले रखी है। वह जता रही है कि तुम जहां भी चलोगे, साया बन कर हर कदम साथ रहूंगी।
… मेट्रो आ गई है। मैं आखिरी कोच में सवार हो रहा हूं। कोई सीट खाली नहीं है। श्रमिक दंपति वरिष्ठ नागरिकों वाली सीट के सामने फर्श पर विराजमान है। देश के निर्माता हैं ये। मगर क्या हम इन्हें मान दे पाते हैं कभी, जिनके ये हकदार हैं। बच्ची को उन्होंने चिप्स का पैकेट खोल कर दे दिया है। प्यारी सी यह परी टुकुर टुकुर यात्रियों को देख रही है और फिर चिप्स को कुतर रही है। उसने मुझे देख कर कई बार पलकें झपकाई है। ओह! सचमुच यह कितनी प्यारी डॉल है। जी कर रहा है इसे गोद में ले लूं।
बच्ची के सिर पर हाथ फेरते हुए मां उसे दुलार रही है। इस बीच वो लाली दुलहनिया करवा चौथ पर अपनी फरमाइशें रख रही है- सुनते हो जी। शाम को व्रत खोलना है। स्टेशन से उतर कर बाजार से पूजा का समान ले लेना। और हां, अग्रवाल वाले से मेरी पसंद का गुलाब जामुन भी। पति उसकी हर मांग पर हां-हां करते हुए मुस्कुराए जा रहा है।
मेट्रो चली जा रही है अपनी रफ्तार में। सच्चा प्यार कहां है। यह मैं यहां देख रहा हूं इस दंपति के भावों में। अभावों के बीच भी खुश। करवा चौथ क्या है? एक दूसरे के लिए मंगलकामना ही तो। और क्या है। कुछ भी तो नहीं। एक दूसरे की खुशी में दिल को जो तसल्ली मिलती है, उससे जिंदगी सार्थक लगने लगती है। हजारों रुपए के उपहार भी खुशी नहीं देते, जितने सच्चे मन से उमड़े दो बोल दे जाते हैं।
वह अपनी प्रिया से कह रहा है-तुम जो कहो, सब ले लेंगे। पर एक नई साड़ी भी न ली आज तुमने। इस पर उसका मासूम सा सवाल है, ले तो लूं, पर तुम ना खरीदोगे कभी कुछ अपने लिए? कित्ते घिस गए तुम्हारे कपड़े। तुम न लेते कभी। मैं ही अपने लिए खरीदती रहूं सब कुछ। पहले तुम लो। फिर मैं लूंगी…। उसकी बात सुन कर पति के चेहरे पर प्यार उमड़ आया है। लाली दुलहनिया कनखियों से प्यार बरसा रही है। यह सहज-सरल दो दिलों के प्रेम का इजहार है। समझ सकेंगे आप? एक दूसरे की जरूरत को समझना ही प्यार है।
…अगला स्टेशन अशोक नगर। उद्घोषणा हो रही है। सच्चे प्यार में पगे इस युगल को देख कर भावुक हूं। प्यार की गागर एक दूसरे पर उड़ेलते रहें, लेकिन फिर भी खाली न हो। यही तो प्रेम है, जो बेचैन समंदर सा लहराता रहता है दिल में। मगर इसमें सिर्फ मिठास ही नहीं होनी चाहिए। अगर साथी थोड़ी चिंता, थोड़ी नसीहत और थोड़ी नाराजगी जता दे, तो जिंदगी सच में नमकीन हो जाती है। प्यार को खट्टा मीठा-नहीं, मीठा और नमकीन बनाइए। एक दूसरे के प्रति फिक्र ही रिश्ते को मजबूती देती है, चाहे यह रिश्ता कोई भी हो, इसे इसी तरह निभाइए।
स्टेशन आ गया है। कोच के दरवाजे खुल गए हैं। मैं सीढ़ियों से नीचे उतर रहा हूं। वे दोनों सामने बाजार की तरफ जा रहे हैं। पत्नी कुछ घंटे बाद अपना व्रत खोलेगी। उसे चांद दिखने का इंतजार है, जब वो एक साथ दो-दो चांद निहारेगी। अपने प्रिय को नजरों से छू लेगी। भर लेगी अपनी आंखों में हमेशा के लिए।
…तो उस यादगार पल के इंतजार में वह खरीदारी कर रहा है। उसे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए। उसे तो अपनी प्रिया के चेहरे पर खिला चांद देखना है। दिल की डगर से गुजरते हुए उतर जाना है वहीं पर। वह कुछ खरीदारी कर मिठाई की दुकान की ओर बढ़ रहा है। पीछे उसकी प्रिया है, उमगते कदमों से साथ चलती हुई, चांद सितारों में खोई सी। बगल वाली दुकान पर रेडियो बज रहा है –
चलो दिलदार चलो,
चांद के पार चलो
हम हैं तैयार चलो…
जिंदगी खत्म भी हो जाए अगर,
ना कभी खत्म हो उल्फत का सफर
चलो दिलदार चलो…
* (लेखक संजय स्वतंत्र की द लास्ट कोच शृंखला से यह कहानी साभार)