सभा-संगोष्ठी

काशी में अश्रुत काव्याटन का आवर्तन-1

अश्रुतपूर्वा II

अश्रुतपूर्वा अर्थात ‘जो पहले सुना ना गया हो’ अपने नाम के अनुरूप ही हम उत्कृष्ठ साहित्यकारों को अपने मंच के माध्यम से श्रोता एवं साहित्य अनुरागियों से जोड़ने को प्रयासरत रहेंगे। अश्रुतपूर्वा प्रयत्नशील है प्रतिभावान लेखनियों को सामने लाने के लिए जो विभिन्न कारणों एवं परिस्थितियोंवश मुख्यधारा प्रवाह संग जुड़ नही पातीं। हमारा मंच कटिबद्ध है दूरस्थ कलमस्वरों को मंच प्रदान करने के लिए जो आज भी एक छोटे से दायरे तक ही गुंजित है। जिसमें भारत के विभिन्न शहरों में जाकर साहित्यिक गोष्ठियां करना, इन गोष्ठियों के माध्यम से साहित्यप्रेमियों को एक मंच पर उपस्थित कर एक ऐसा परिवेश निर्मित करना जहाँ  साहित्य के माध्यम से अपनी संस्कृति एवं धरोहर को आने वाली पीढ़ी तक पहुँचा सकें। और यह कार्य हम युवा रचनाकारों एवं अनुभवी वरिष्ठ रचनाकारों को एक साथ एक मंच पर एकत्र ही कर सकते हैं। ‘अश्रुतकाव्याटन’ हमारे इसी प्रयास का प्रकट स्वर है। हमें यह दृढ़ विश्वास है कि- साहित्य और संस्कृति को समर्पित हमारा ये देशाटन संकीर्णता के हर दायरे को तोड़ नये आयाम रचेगा।’ 21 अक्टूबर को काशी में काव्याटन के दौरान अश्रुत पूर्वा का अनुभव सुखद रहा। जहाँ काशी के वरिष्ठ विद्वान साहित्यकारों की उपस्थिति के साथ युवा चेतना का उत्साही स्वर भी गुंजायमान हुआ। भारत अध्ययन केन्द्र के सभागार में ‘अश्रुत काव्याटन’ का शुभारम्भ दीप प्रज्जवलन के साथ महामना मालवीय जी एवं वीणापाणी माँ की छवि पर माल्यार्पण के साथ हुआ। बी एच यू की छात्राएं सुश्री आराधना मिश्रा और अंगीरा तिवारी जी ने सरस्वती वंदना गाकर आयोजन को गति प्रदान की। काव्यगोष्ठी के अध्ययक्षता काशी के प्रसिद्ध लोकगीतकार एवं साहित्यसाधक पं.हरिराम द्विवेदी जी ने की। शास्त्रीय काव्य यात्रा का सफर काव्यगोष्ठी में पठित कविताओं में बखूबी दिखा। काशी शिव की नगरी है अतः शिव और काशी आधारित रचनाओं का बाहुल्य रहा। इसके अलावा भी ममता से लेकर राष्ट्रभक्ति, प्राचीन परम्पराओं की छांव को ठाव मिली तो वहीं वर्तमान हालातों पर भी कटाक्ष कसे गए। ‘गांधी जी की बकरी’ भी दिखी, तो बुद्ध का बुद्धत्व भी प्रकाशित हुआ।
आयोजन के मुख्य अतिथि  बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष श्री सदाशिव कुमार द्विवेदी जी ने अपने वक्तव्य में कहा- ‘भारत अध्ययन केन्द्र की स्थापना से अब तक काव्यरस की इतनी विविधता लिए धारा पहली बार किसी आयोजन में प्रवाहित हुई जिसका श्रोताओं ने भी रससिक्त होकर अभिनंदन किया। पूरे आयोजन का सार अपनी तत्काल रचित हिन्दी कविता में कुछ इसप्रकार दिया-

‘ममता से शुरू कविता का सफर (श्रुति गुप्ता जी)
माता की छांव बिखेर गया

निज देश के गौरव से चमका
निज देश की छवि बिखेर गया (डाॅ फ़िरोज़)

भारत की निर्मिति पर केन्द्रित
सीता राधा की तपस्या उकेर गया (रुद्र प्रताप’रामिश’)

काशी को करती नित नवीन रंगों से हसीं (लिली मित्रा)
हँसना स्त्री का दमक उठा  (सांत्वना श्रीकांत)
सबके हृदयों में प्रवेश गया

आवाज़ करो का नाद भरा
नित आदि अंत का संकेत भरा (डाॅ अलका दूबे)

कठपुतली सी जीवनशैली
खजुराहो का सत्य उकेर गया। (प्रो नीरज खरे)

बरसात की अंतिम बूंदों ने गहराई से
दिल भर सबको सींचा
गांवों की छांव भरी निमिया (डाॅ परमहंस तिवारी)
शहरों के बीच नही मिलती

ग़म संघ राज्य के खोने का
गांधी का सत्य समेट गया (प्रो सदानंद शाही)

ज्ञानेंद्र कगजिया का ग़म तो
नव निर्मिति के चक्रावृत में
विध्वंश की कथा उकेर गया  (श्री ज्ञानेंद्रपति जी)

हरिराम तुम्हारी छाया में  (पं. हरिराम द्विवेदी)
कविता का नित्य प्रवाह चला।
प्रो सदाशिव कुमार द्विवेदी जी के ने सभी का अभिवादन करते हुए अपने वक्तव्य को विराम दिया। अंत में पं हरिराम द्विवेदी जी ने अपनी रचनाएं एवं पद सुनाए-
हंसी हंसी बोले बैन फ़कीरा
खींच देत पानी में रेखा
भइया देख सके तो देखा…..l

मंच को दिव्यता प्रदान करते वरिष्ठ साहित्यकारों में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित श्री ज्ञानेंद्रपति जी, प्रो सदानंद शाही जी, डाॅ अलका दूबे जी, श्री परमहंस तिवारी, डाॅ प्रो नीरज खरे जी, वहीं युवा रचनाकारों में डाॅ फ़िरोज़, श्री रुद्रप्रताप सिंह, श्रीमती श्रुति गुप्ता, इंस्पा इलाहाबादी लिली मित्रा, एवं अश्रुतपूर्वा की संस्थापिका डाॅ सांत्वना श्रीकांत जी ने काव्यपाठ किया। मंच का कुशल संचालन किया सुश्री ज्योति सिंह जी ने।

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