गोलेन्द्र पटेल II
जहाँ दिखता है
गोबर, गोहरा, गोइठा, गाज, …., धूल व धुआँ
और
हर दुआर पर कुआँ
वह गाँव है
और वहाँ जिसकी पहचान — खलिहान है
वह किसान है
बाकी सब मजदूर
जो नंगे पाँव खटते हैं खेत में
दिनभर — मर-मर
दुःख की दुपहरी है
छाले बता रहे हैं
कि यहाँ छद्म की छाँव है
गुरु! यह मेरा गाँव है
खजूरगाँव है।
2.
सरस्वती और सई की सिसकियाँ
संगम के ऐतिहासिक दुःख में
शामिल है हमारी सदी की संवेदना
जनता की आँखों में जन्म ले रही हैं नदियाँ
बाढ़ आ गयी है चेतना के चेहरे पर
समय के तट पर सदानंद शाही सुन रहे हैं
सरस्वती और सई की सिसकियाँ
अक्सर जब कोई कवि डूबकी लगता है शोकसागर में
मोतियों के जगह पाता है
सीपी और शंख का दुख
कछुआ और केकड़ा का कष्ट
कंकड़ और कौड़ी की व्यथा-कथा का शब्द
गुरुवर उसी शब्दों से साध रहे हैं
वेदना की असाध्य वीणा!!
3.
दीर्घजीवी का दृष्टिकोण
‘क’ कला दीर्घा में ‘देखना’ क्रिया
एक दीर्घजीवी के दृष्टिकोण में डूबने जैसा है
ऐसा है कि एक कवि की तरह
दुनिया के किसी भी ‘द्रव्य’ को
नितांत निगाहों से निर्निमेष निहारना ही है
उसमें डूबते हुए उसकी परिभाषा को परखना
यहाँ खोने की कला पाने की तरह है और
छोड़ना दरअसल कर्म को कोड़ना है!
4-शाही सर के घर
एक दिन साहित्यिक-सफर में मैंने देखा
दिशा ठीक थी
पर सड़क पर शब्द गिरा था
साइकिल से संवेदना झुकी नीचे नरिया तिराहे पर
वाहनों की हवा हिला रही थी
पेड़ों की पत्तियाँ
वक्त की वेदना बजा रही थी घंटी
अंटी के बीच फंसी हुई कंठी फेर रही थी चेतना
दनादन पैडिल मार रही थी देह की थकान
तभी अचकचाई आँखें ऊँचकर देखी
कि दाँयें-बाँयें मुड़ते-मुड़ते मेरा मन पहुंच गया
शाही सर के घर उम्मीदों की उड़ान भर रही थीं मुलाकात की यादें
स्मृतियों के सागर में हो रही थीं हलचलें
मेरे साथ समय सुन रहा था
सूर्योदयी स्वर में सत्य का शंख बज रहा था
गुरु के मुख से निकल रहा था वेदज्ञान
सूक्त-सूक्ति-सूत्र-ऋचाएँ
बुद्ध, गोरखनाथ, कबीर, रैदास एवं अन्य संत की रचनाएँशांति से कांति फैल रही थी कमरे में
और मुझे प्राप्त हो रहा था गुरुमंत्र
जागृत हो रहा था जीवन का यंत्र
सीख की तरंगें उठ रही थीं भीतर
धन्य हैं गुरुवर
धन्य हैं कि आप मुझे जैसे बुद्धू में सद्बुद्धि का बीज बोये!
5-समकालीन कविता के संत कवि हैं सदानंद शाही
इस अंधकार में जिनकी रचना हृदय की हवि है
उस आचार्य की मेरे मन में अद्भुत अनंत छवि है
गुरु गोरखनाथ परंपरा में कबीर के समान रवि हैं
सदानंद शाही समकालीन कविता के संत कवि हैं
बाबा रैदास की बानी नदी का निर्मल पानी है
आपकी रचना गँवई गंध की करुण कहानी है
भटके को सही राह दिखा दे जो वही ज्ञानी हैं
सच कहते हैं शिष्यगण आप विद्या के दानी हैं
गुरुवर सदानंद शाही जी को समर्पित