अश्रुतपूर्वा II
दुनिया में भगवान बुद्ध के करोड़ों भक्त हैं। हम सभी जानते हैं कि वह मानव जाति के सबसे दयालु और बुद्धिमान धर्मोपदेशकों में से एक थे।
असल में बुद्ध कोई नाम नहीं है। इस शब्द का अर्थ है-वह व्यक्ति जिसे बोध या ज्ञान प्राप्त हो गया है, जिसने जीवन का सही अर्थ समझ लिया है, जिसने इस बात पर गहराई से सोचा-विचारा है कि शांति और सुख प्राप्त करने के लिए मनुष्य को किस तरह जीना चाहिए। बुद्ध का असली नाम या सिद्धार्थ वह एक राजकुमार थे और आज से ढाई हजार वर्ष से भी पहले इस देश में रहते थे
एक अँधेरी रात को उन्होंने अपना राजमहल त्याग दिया और बरसों देश भर में भ्रमण करते रहे उनके घर छोड़ने का कारण यह नहीं था कि वह अपने घर, अपने माता-पिता, अपनी पत्नी या पुत्र को प्यार नहीं करते थे ।
बात यह थी कि उन्होंने चारों ओर इतना दुःख और कष्ट देखा कि उसे दूर करने का उपाय ढूंढ़े बिना उन्हें चैन नहीं था
सूर्योदय के साथ-साथ फूल खिल उठते हैं। उन पर पड़ी ओस की बूंदें सूरज की रोशनी में हीरे की कनियों की तरह चमकती हैं। लेकिन सूरज के अस्त- होते-होते फूल मुरझा जाते हैं। बसंत में पेड़ फूलों से लहलहा उठते हैं। लेकिन फिर आते हैं पतझड़ और गरमी पेड़ के सारे पत्ते और फूल झड़ जाते हैं। शिशु बड़े होते हैं, किशोर और किशोरियाँ बनते हैं, युवा बनते हैं। उनके लिए जिंदगी हँसी-खुशी से भरी, ऐसी होती है जैसे खेल का मैदान लेकिन बुढ़ापे से कोई बच नहीं सकता और एक दिन मनुष्य का ही नहीं, प्रत्येक जीव का अंत हो जाता है।
शायद संसार का यही नियम हैं और इसको लेकर दुःखी होने का कोई लाभ नहीं। लेकिन जब तक हम जीवित हैं, क्या हम प्रसन्न और संतुष्ट रहने का और एक-दूसरे के प्रति भला बने रहने का प्रयत्न नहीं कर सकते ? लगता तो यही है कि मनुष्य ऐसा कर नहीं पाता। दुनिया में इतना अधिक दुःख और असंतोष है और इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि लोग बिना कारण या किसी व्यर्थ की बात पर परस्पर द्वेष रखते हैं, लड़ते-झगड़ते हैं। अगर लोग कम मतलबी होते तो एक-दूसरे के साथ ज्यादा अच्छी तरह निबाह कर सकते और दुनिया अधिक आनंदपूर्ण होती ।
राजकुमार ऐसा उपाय खोजने के लिए बेचैन थे जिससे मनुष्य में स्वार्थ न रह जाय और वह भला बन सके। वह जानते थे कि अगर वह सारे सुख- ऐश्वर्य को भोगते हुए महल में रहते रहे तो वह अपने उद्देश्य को कभी पूरा नहीं कर सकेंगे
रात को उन्होंने घर छोड़ा तो फूलों की सेज पर सोये अपने पत्नी-पुत्र की ओर बार-बार मुड़ कर देखते रहे। अपने नन्हें से पुत्र को छोड़ कर जाते हुए उनका हृदय फटा जा रहा था, और एक बार तो उनको ऐसा लगा कि बच्चे को साथ न ले गये तो वह जा नहीं सकेंगे। लेकिन गहरी नींद में भी माँ नन्हें पुत्र को छाती से चिपकाये अपने हाथ से उसकी रक्षा कर रही थी। राजकुमार ने सोचा, “अगर मैं युवरानी का हाथ परे हटाता हूँ तो वह निश्चय ही जग जायेगी और फिर में कभी नहीं जा सकूंगा । अपने परिभ्रमण के बाद, जब मैं मनुष्य के कष्ट को दूर करने का रास्ता पा लूंगा तो मैं फिर अपने पुत्र को देखने वापस आऊँगा ।”
वर्षों की यात्रा और चिंतन के बाद राजकुमार को पता लगा कि मनुष्य के जीवन को सुखी और शांतिपूर्ण बनाने की समस्या का उत्तर तो उन्हें उसी रात को मिल गया था जब उन्होंने घर छोड़ा था। उन्होंने देखा था कि नींद में भी माँ का हाथ किस प्रकार बच्चे की रक्षा कर रहा था। लेकिन इसका अर्थ उन्हें उस समय समझ में नहीं आया था। यह अब उन्हें समझ में आया और उन्होंने कहा, “जिस तरह माँ बच्चे की रक्षा करती है उसी तरह हर एक को प्रत्येक प्राणी की रक्षा करनी चाहिए।” यदि हर एक आदमी दूसरे जीवों की चिंता उसी प्रकार करे जैसे माँ बच्चे की करती है तो बड़ों की दुनिया भी वैसी ही आनंदपूर्ण हो जायेगी जैसे प्रसन्न बच्चों का संसार । जीवों के प्रति बुद्ध के मन में करुणा और प्रेम था। उनकी मृत्यु के बाद भी लोग उनकी इस सदाशयता को सदा याद करते रहे।
आप जानते हैं कि लोगों में आम विश्वास है कि अच्छा कर्म करनेवाले लोग मर कर स्वर्ग जाते हैं और वहाँ हमेशा के लिए सुख से रहते हैं। बुद्ध के बारे में यह कहानी फैल गयी कि जब मनुष्यों और पशु-पक्षियों की एक पीढी के बाद दूसरी पैदा होती रही और उन्हें अपने दुख और कष्ट में सहायता की ज़रूरत पड़ती रही तो बुद्ध ने स्वर्ग का सुख भोगना स्वीकार नहीं किया । इसलिए कहा जाता है कि अलग-अलग रूप में जन्म धारण करके वह पृथ्वी पर अनेकों बार अवतरित हुए। सिद्धार्थ के रूप में जन्म लेने से पहले भी वह कई बार जन्म ले चुके थे । अलग-अलग देशों में, अलग-अलग रूपों में, उनके इन अनेक जन्मों के बारे में कहानियाँ प्रचलित हो गयी थीं। हर एक ऐसी कहानी जातक (जन्म) कहलाती थी, क्योंकि प्रत्येक कहानी बुद्ध के किसी एक ऐसे जन्म को लेकर कही गयी थी। कुछ समय बाद ये सारी कहानियाँ पालि भाषा में लिखी गयीं । पालि पुराने ज़माने में मगध में बोली जानेवाली भाषा थी और पुराने बौद्ध धार्मिक ग्रंथों की भाषा भी थी । जातक में पाँच सौ से अधिक कहानियाँ हैं ये कहानियाँ एक अमूल्य निधि हैं। एक बात तो यह है कि ये कहानियाँ बहुत सुंदर हैं पालि से संस्कृत में इनका अनुवाद और विस्तार से किया गया । दूसरी बात यह है कि प्राचीन मूर्तिकारों ने इन कहानियों को सांची, भरहुत और अमरावती जैसे बौद्ध धर्म के केंद्रों में मूर्तियों और दीवार पर उकेरे चित्रों द्वारा वर्णित किया। चित्रकारों ने भी इन्हें रेखाओं और रंगों के द्वारा फिर से सिरजा । जातक की लगभग सभी कहानियाँ अजंता की गुफाओं में चित्रित हैं ।
साभार: ‘रोहंत और नंदिय'[ नेहरू बाल पुस्तकालय-15, 1971]