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कवि जीवन के दुख-दर्द को मनुष्यता की पीड़ा में रूपांतरित करता है : राजेंद्र जोशी

अश्रुतपूर्वा II

नई दिल्ली। साहित्यकार राजेंद्र जोशी ने कहा कि आज की कविता और कवि वर्तमान दौर में पुराने कवियों से लगभग जुड़ते दिखाई देते हैं। वह समकालीन होकर भी सर्वकालिक होता है। उन्होंने कहा कि कविता साहित्य की सबसे महीन विधा है। कविता का जन्म धरती पर आदमी के जन्म के साथ ही हुआ है। कविता बुनियादी तौर पर सार्वदेशिक और सार्वभौमिक होती है।
 श्री जोशी राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर के तत्वावधान में इटली मूल के राजस्थानी भाषा के विद्वान डॉ. एलपी तैस्सितोरी की 103 वीं पुण्यतिथि पर सात दिवसीय कार्यक्रमों की शृंखला के तहत आयोजित त्रिभाषा काव्य गोष्ठी में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि कविता में विचार की अपनी अहमियत होती है कविता की पहचान का बुनियादी स्रोत मनुष्य का भाव जगत ही है। जोशी ने काव्य गोष्ठी में कविता और कवि पर बात करते हुए कहा कि समाज में कवि अपने जीवन के सारे दुख-दर्द को मनुष्यता की पीड़ा में रूपांतरित करता है और उसे वृहत्तर मानवीय और नैसर्गिक जीवन की गहरी कलात्मक भाषा देता है।
कार्यक्रम संयोजक साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने बताया कि डॉ. तैस्सितोरी को समर्पित काव्य-गोष्ठी म्यूजियम परिसर स्थित सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट के सभाकक्ष में आयोजित की गई। काव्य-गोष्ठी की अध्यक्षता कवि-कथाकार राजेंद्र जोशी ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ गीतकार-रचनाकार निर्मल कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ गजलकार नेमीचंद पारीक थे।
श्री स्वर्णकार ने तैस्सितोरी  के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपनी कविता का वाचन करते हुए कहा- तुम राजस्थानी संस्कृति में रंगे थे, इटली में जन्मे यह भूगोल की गलती थी। कविता इस तरह प्रस्तुत की- हम इतने कृतघ्न  नहीं जो तुम्हें भुलाएं, त्याग, तपस्या और समर्पण को बिसराएं।
युवा कवियत्री और आलोचक  डॉ. रेणुका व्यास ने अपनी दो राजस्थानी कविताओं की शानदार प्रस्तुति दी। उन्होंने खेजड़ी की महिमा बताते हुए कविता में कहा कि खेजड़ी जीवन का आधार होती है और जमाना हो या ना हो खेजड़ी हारती नहीं है, अकाल में अकेली खेजड़ी दिखाई देती है खेजड़ी की चंद पंक्तियां उन्होंने इस तरह प्रस्तुत कीं-

रेती रण री वीर खेजड़ी, मीरा रो है चीर खेजड़ी
दोराई सूं हारै कोनी, जीवन में रणधीर खेजड़ी।

(पूरी खबर संस्थान की विज्ञप्ति पर आधारित)

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