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नहीं रहे ‘द सिटी आफ जॉय’ के लेखक डॉमिनिक लैपियर

अश्रुतपूर्वा II

नई दिल्ली। ‘द सिटी आफ जॉय’ के चर्चित लेखक डॉमिनिक लैपियर नहीं रहे। वे 91 साल के थे। वे भारत में कोलकाता पर केंद्रित ‘द सिटी आफ’ जॉय के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने कोलकाता की मलिन बस्तियों में कुष्ठ रोग से पीड़ित बच्चों को बचाने के लिए अपनी पत्नी के साथ संगठन की स्थापना की। इसका नाम ‘सिटी आफ जॉय फाउंडेशन’ था। फ्रांसीसी लेखक लैपियर को 2008 में पद्मभूूषण से सम्मानित किया गया था। उनके निधन की जानकारी उनकी पत्नी डॉमिनिक कोंचोन-लैपियर ने दी।
‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ दूसरी किताब थी जिसने लैपियर को चर्चित बनाया। कोंचोन लैपियर के हवाले से फ्रांसीस अखबार वार-मेटिन ने बताया कि डॉमिनिक का 91 साल की उम्र में निधन हो गया। बता दें कि अस्सी के दशक में लैपियर दंपति के संगठन (फाउंडेशन) ने भारत में कुपोषण और गरीबी के बीच कुष्ठ रोग और अन्य बीमारियों से जूझ रहे नौ हजार बच्चों को बचाया था। उनके फाउंडेशन की वेबसाइट पर कहा गया कि इसने 1,200 गांवों में तपेदिक से लड़ने में सहायता की। पीने के पानी के लिए 541 नलकूप खुदवाए। फाउंडेशन ने इस दौरान 50 लाख से अधिक रोगियों को चिकित्सा सहायता दी।  

विख्यात फ्रांसीसी लेखक डॉमिनिक लैपियर बहुत याद आाएंगे। कोलकाता पर केंद्रित उनका चर्चित उपन्यास  ‘द सिटी आफ जॉय’  को हमेशाा याद किया जाएगा। इस उपन्यास की लाखों की प्रतियां बिकीं। अपने जिगरी दोस्त लैरी कॉलिंस के साथ उन्होंने छह  किताबें लिखीं, जिनकी पांच करोड़ प्रतियां बिकीं।

फ्रांस के चेटेलिलॉन में 30 जुलाई, 1931 को जन्मे डॉमिनिक अपने जीवन में लगातार यात्रा करते रहे। फ्रांस का यह लेखक यात्रा करते हुए कोलकाता में शोध करने पहुंचा। यहीं वे मदर टेरेसा के सहयोगी बने। टेरेसा ने ही लैपियर को उनके जीवन और मिशनरीज आफ चैरिटी के काम पर फिल्म के लिए लिखने का अधिकार दिया। फिल्म ‘मदर टेरेसा: इन द नेम आफ गॉड्स पुअर’ में मदर टेरेसा की भूमिका अभिनेत्री गेराल्डिन चैपलिन ने निभाई थी। यह फिल्म अमेरिका और यूरोप के कई चैनलों पर दिखाई गई।
लेखक लैपियर ने 17 साल की उम्र में 30 अमेरिकी डॉलर के साथ पेरिस छोड़ा और एक जहाज पर काम किया। अमेरिका पहुंचने पर उन्होंने उत्तरी अमेरिका के चारों ओर 30 हजार मील की यात्रा की। इस यात्रा पर उन्होंने ‘अ डॉलर फॉर ए थाउजेंड माइल्स’ लिखी जो काफी चर्चित हुई। लैपियर नई कहानियों और संदेशों के लिए लगातार दुनिया घूमते रहे। साल 1954 में सैन्य सेवा पूरी करने के बाद लैरी कॉलिंस से मिले। बाद में उनकी यह मित्रता काफी प्रगाढ़ हुई और दोनों ने कई किताबें लिखीं। उनकी ‘ओ यरुशलम’, ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ और ‘द फिफ्थ हार्समैन’ जैसी कई किताबें 30 से ज्यादा भाषाओं में छपी। (मीडिया में आए समाचार की पुनर्प्रस्तुति)

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