अभिप्रेरक (मोटिवेशनल)

जरूरत में बने रिश्ते नहीं चलते दूर तक

राधिका त्रिपाठी II

समाज कितना बदल गया है। आजकल लोग रिश्तों को भी नमक की तरह आवश्यकता अनुसार या कहें अपनी सुविधा अनुसार इस्तेमाल  करते हैं। जितने समय की जरूरत उतने समय का रिश्ता। कम न ज्यादा। बस मन भर। मन भर जाने के बाद दिल से निकाल कर बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। और फिर तलाश शुरू होती है बाहर गए रिश्ते के विकल्प की। विकल्प भी जल्द ही उपलब्ध हो जाता है।
किसी के जीवन में विकल्प बन कर आया अतिरिक्त व्यक्ति भी जानता है कि वह भी कुछ समय के लिए है। अर्थात विकल्प को भी विकल्प ही चाहिए, न कि रिश्ता। वह भी समय की उपलब्धि पर प्राप्त रिश्ते को पाकर कुछ दिन इतराता है। और फिर वही सिलसिलेवार कहानी शुरू होती है दोनों विकल्पों के बीच। यह जो जरूरत पर बना संबंध है, बहुत दिनों तक नहीं चलता। अपनी-अपनी इच्छा पूरी होते ही दोनों पक्ष अलग राह पर निकलने की जुगत में लग जाते हैं। सचमुच मनुष्य की अजीब फितरत है।  
अब देखिए। यहां तक तो सब कुछ ठीक ठाक चलता है। फिर कुछ दिन बाद हम विकल्प में भी छोड़ कर आए रिश्ते ढूंढने लगते हैं। फिर आवश्यकता अनुसार नमक की जरूरत महसूस होती है। और यह सही भी है। नमक जरूरत अनुसार या स्वाद अनुसार ही इस्तेमाल करना चाहिए। न कम न ज्यादा, एकदम हिसाब से। ज्यादा हुआ तो ‘हाई बीपी’। कम हुआ तो ‘लो बीपी’। अब इस झ़मेले में कौन पड़े ‘हाई’ और ‘लो’ के, तो हम विकल्प की बात करते हैं…।

किसी भी रिश्ते में किसी का विकल्प या अतिरिक्त बनने से बचिए। उम्मीदें पालना बंद करिए। विकल्पी रिश्तों में नमक के मुताबिक इस्तेमाल होना बंद करिए। खुद की तलाश करिए, खुद ही अपना दोस्त बनिए। उसे फिर जब नमक की जरूरत होगी, वो आएगा या आएगी आपके पास।

तर्क में हम बहुत सी बातें कह सकते हैं। लेकिन क्या फायदा? तो सीधा मुद्दे पर आते हैं। किसी भी रिश्ते में किसी का विकल्प या अतिरिक्त बनने से बचिए। उम्मीदें पालना बंद करिए। आप जो हैं, जैसे हैं खुद के लिए है। और बहुत अच्छे हैं। विकल्पी रिश्तों में नमक के मुताबिक इस्तेमाल होना बंद करिए। खुद की तलाश करिए, खुद ही अपना दोस्त बनिए। उसे फिर जब नमक की जरूरत होगी, वो आएगा या आएगी आपके पास। यह तय करना आपका काम है कि आपकी कितनी जरूरत है इसके जीवन में। नमक भर या जीवन भर?
अजीब दास्तां है। ये कहां शुरू कहां खत्म। ये मंजिलें हैं कौन सी न वो समझ सके न हम……!! इस गीत को याद करते हुए सोचती हूं कि आज के दौर में रिश्तों का यही हाल है। कब शुरू हो और कब खत्म हो जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता। इसलिए आज के दौर में रिश्तों को परखना बहुत मुश्किल है। बेहतर हो कि इसके लिए समय दिया जाए। जल्दी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिए।
… और हां जिसे अतिरिक्त की तलाश होगी वह विकल्प ढूंढेगा ही। आप खुद में कमी देखना बंद करिए। थाम कर उसकी उंगली अपनी आंखें मत बंद करिए। यह जीवन अमूल्य है। इसे आज से जीना शुरू करिए अभी देर नहीं हुई। किसी के जीवन में विकल्प मत बनिए। ठोस धरातल पर रिश्ते जोड़िए। चाहे वह भावनात्मक ही क्यों न हो। वह कम से कम सच्चा तो होगा। स्वार्थ से परे होगा। वह मीठा सा होगा, नमक स्वादानुसार नहीं होगा।       

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