कविता काव्य कौमुदी

मुझे भगवान मिल गए

एक सुबह निकल पड़ता हूं
कार्यालय के लिए,
दौड़ कर मेट्रो पकड़ता हूं
और सीट पर बैठने का
प्रयास करता हूं मैं,
तब तक कोई दूसरा बैठ जाता है।

मैं थका हारा देखता हूं खिड़की से
लोगों को बड़ी गाड़ियों से जाते हुए,
पराजित सा महसूस करता हूं।

कार्यालय में नोटिंग फाइल पर
नोटिंग लिख कर
बॉस के कमरे में ले जाता हूं
और झिड़क कर कक्ष से
बाहर कर दिया जाता हूं
कि आई पर बिंदी क्यों नहीं रखी
मैं पराजित महसूस करता हूं।

कुछ सुस्वादु भोजन
खाने की तलाश में
शॉपिंग मॉल में घुस जाता हूं
किंतु भाव सुन पुन:
जेब में इकलौते नोट को
हाथ में दबाए छोले-कुलचे खाकर
अपनी क्षुदा शांत करता हूं।

मैं पराजित महसूस करता हूं
मैं तमाम पराजयों की गठरी लादे
विजय की आशा में
ढूंढता हुआ भगवान को
मंदिर-मस्जिद और गिरजाघरों में,
शाम को घर की कॉल बेल बजाता हूं
और दरवाजा खुलने पर
छह माह का नन्हा सा
बच्चा मुझसे लिपट जाता है
और अपने छोटे-छोटे हाथों से
मेरे दोनों गालों को सहलाता है,
मैं उसके दैवीय स्पर्श से ऊर्जान्वित हूं
अपनी तमाम पराजयों को झाड़ कर
फिर तैयार हो जाता हूं
दूसरे दिवस के विजय अभियान के लिए,
अब मुझे भगवान मिल गए हैं।

About the author

राकेश धर द्विवेदी

राकेश धर द्विवेदी समकालीन हिंदी लेखन के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे कवि हैं तो गीतकार भी। उनकी कई रचनाएं प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। द्विवेदी की सहृदयता उनकी रचनाओं में परिलक्षित होती है। उनकी कुछ रचनाओं की उपस्थिति यूट्यूब पर भी देखी जा सकती है, जिन्हें गायिका डिंपल भूमि ने स्वर दिया है।

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