सुभद्रा कुमारी चौहान II
यह कदंब का पेड़ अगर मां होता यमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥
ले देती यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली॥
तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।
उस नीची डाली से अम्मा ऊंचे पर चढ़ जाता॥
वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हें बुलाता॥
बहुत बुलाने पर भी मां जब नहीं उतर कर आता।
मां, तब मां का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता॥
तुम आंचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे।
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आंखें मीचे॥
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता।
और तुम्हारे फैले आंचल के नीचे छिप जाता॥
तुम घबरा कर आंख खोलतीं, पर मां खुश हो जाती।
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पाती॥
इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे।