अश्रुतपूर्वा II
नई दिल्ली। समाज को आईना दिखाने की जिम्मेदारी पत्रकारों और लेखकों की है। चर्चित लेखक आनंद नीलकंठन ने सिक्किम कला एवं साहित्य महोत्सव में पिछले दिनों यह बात कही। इस मौके पर उन्होंने बड़ी बेबाकी से अपनी बात रखी। अपनी किताबों को राजनीतिक बताते हुए नीलंकठन ने यह भी कहा कि उन्होंने बच्चों के लिए जो किताबें लिखी हैं वे भी अत्यंत राजनीतिक स्वरूप की हैं।
सिक्किम में आयोजित कला एवं साहित्य महोत्सव में पौराणिक कथा लेखक ने कहा कि समकालीन मुद्दों के बारे में बात करने के लिए वे अपनी रचनाओं में व्यंग्य का इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने अपनी पौराणिक पुस्तकों का हवाला देते हुए कहा, यह एक पत्रकार, एक कहानीकार की जिम्मेदारी है कि वह समाज को आईना दिखाए …इसलिए जब मैं बाहुबली, असुर या अजेय लिखता हूं, तब गहन अध्ययन करने वाले लोग इसके अंदर छिपे अर्थ को समझ सकते हैं कि मैं उस समय के हस्तिनापुर की बात नहीं कर रहा। बल्कि मेरा हस्तिनापुर आज का भारत है। उन्होंने कहा, मेरी लंका आज का भारत है। मेरी किष्किंधा और माहिष्मति आज का भारत है।
उनचास साल के लेखक आनंद नीलकंठन ने कहा कि उनकी पुस्तकें राजनीतिक हैं जिनके किरदार पौराणिक आख्यानों के होने के बावजूद हमारे आसपास के लोगों पर आधारित हैं। उन्होंने कहा, यहां तक कि मेरी लिखी बच्चों की किताबें भी जब उनके माता-पिता दूसरी बार पढ़ते हैं तब उन्हें समझ आता है कि मैं कुछ और कहना चाह रहा था।
नीलकंठन ने कहा, मेरी किताबें राजनीतिक हैं, लेकिन मैं यह सामने नहीं कहूंगा। यह जानना लोगों की जिम्मेदारी है। संवादात्मक होने पर कला गहन रूप ले लेती है। अगर मैं सब कुछ बताने लग जाउंगा तो यह कला नहीं होगी। उनकी सबसे अधिक बिकने वाली पुस्तकों में बाहुबली त्रयी-द राइज आॅफ शिवगामी, चतुरांगना और क्वीन आफ माहिष्मति शामिल है। (मीडिया में आई खबर के आधार पर)
यह एक पत्रकार, एक कहानीकार की जिम्मेदारी है कि वह समाज को आईना दिखाए। इसलिए जब मैं बाहुबली, असुर या अजेय लिखता हूं, तब गहन अध्ययन करने वाले लोग इसके अंदर छिपे अर्थ को समझ सकते हैं कि मैं उस समय के हस्तिनापुर की बात नहीं कर रहा। – नीलकंठन, लेखक