कविता काव्य कौमुदी

दूर कहीं गूंज उठी शहनाई है

राकेश धर द्विवेदी II

रात रो-रोकर कटी है कहीं पर,
कहीं सुबह हो रही विदाई है।

किसी के अरमानों का गला घोटा गया
किसी के अरमान सज कर आए हैं

जिंदगी किसी की बन गई कांटे
फूल किसी की जिंदगी के मुस्कुराए हैं।

अश्क आंखों में भर आए किसी के,
हंसी होठों पे किसी की आई है।

किसी की फूलों से सज गई अर्थी
किसी के गजरों की खूशबू आई है,

रात अमावस की किसी की आई है
किसी ने हाथों में मेहंदी रचाई है

आंख रो-रोकर लाल हुई किसी की,
किसी की लबों पर हंसी आई है।

उसकी याद फिर से आई है,
दूर कहीं गूंज उठी शहनाई है।

About the author

राकेश धर द्विवेदी

राकेश धर द्विवेदी समकालीन हिंदी लेखन के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे कवि हैं तो गीतकार भी। उनकी कई रचनाएं प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। द्विवेदी की सहृदयता उनकी रचनाओं में परिलक्षित होती है। उनकी कुछ रचनाओं की उपस्थिति यूट्यूब पर भी देखी जा सकती है, जिन्हें गायिका डिंपल भूमि ने स्वर दिया है।

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