राकेश धर द्विवेदी II
रात रो-रोकर कटी है कहीं पर,
कहीं सुबह हो रही विदाई है।
किसी के अरमानों का गला घोटा गया
किसी के अरमान सज कर आए हैं
जिंदगी किसी की बन गई कांटे
फूल किसी की जिंदगी के मुस्कुराए हैं।
अश्क आंखों में भर आए किसी के,
हंसी होठों पे किसी की आई है।
किसी की फूलों से सज गई अर्थी
किसी के गजरों की खूशबू आई है,
रात अमावस की किसी की आई है
किसी ने हाथों में मेहंदी रचाई है
आंख रो-रोकर लाल हुई किसी की,
किसी की लबों पर हंसी आई है।
उसकी याद फिर से आई है,
दूर कहीं गूंज उठी शहनाई है।