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नहीं रहे समाजशास्त्री प्रो. इम्तियाज अहमद

अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में राजनीतिक समाजशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर और सामाजिक विज्ञान के विद्वान इम्तियाज अहमद का पिछले दिनों निधन हो गया। वे 83 साल के थे। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में उनका इलाज चल रहा था। प्रोफेसर इम्तियाज की  किताबें भारत ही नहीं पूरी दुनिया में पढ़ी जाती है। भारत में मुसलमानों के सामाजिक स्तर पर लिखी उनकी किताबें प्रामाणिक हैं। संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों की बीच उनकी किताबें काफी लोकप्रिय हैं।
प्रो अहमद ने अपनी लेखनी से मुसलिम सशक्तीकरण, अल्पसंख्यक अधिकार, मुसलमानों में शिक्षा की भूमिका, सामाजिक वास्तविकताओं और इस्लामी विचारधारा, भारत में मुसलिम महिला और सांप्रदायिकता जैसे विषय शामिल हैं। भारत की समग्र संस्कृति पर प्रकाश डालने वाले उनके लेखन को दुनियाभर में सराहा गया।
इम्तियाज अहमद ने 1958 और 1960 में लखनऊ विश्वविद्यालय से बीए और एमए की पढ़ाई की थी। उन्होंने 1964 में दिल्ली विश्वविद्यालय में आर्थिक विकास संस्थान में एक वरिष्ठ शोध विश्लेषक के रूप में अपने करिअर की शुरूआत की थी। दो साल बाद उसी विश्वविद्यालय में वे समाजशास्त्र के व्याख्याता बन गए। प्रो. अहमद ने 1967-68 के बीच नृविज्ञान विभाग, शिकागो विश्वविद्यालय, संयुक्त राज्य अमेरिका में फेलो थे। वे दक्षिण एशिया केंद्र, शिकागो विश्वविद्यालय में फेलो और भारतीय सामाजिक विज्ञान परिषद, नई दिल्ली के भी वरिष्ठ फेलो थे।
अमेरिका के मिसौरी विश्वविद्यालय में अहमद ने मानव विज्ञान के विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में काम किया। इसके बाद 1972 में जेएनयू में राजनीतिक समाजशास्त्र में एसोसिएट प्रोफेसर बने। वे 1983 में विभाग में प्रोफेसर बनाए गए। वहां तीन दशकों तक अध्यापन किया। प्रोफेसर इम्तियाज अहमद के निधन पर उनके छात्रों और धर्मनिरपेक्षता के पैरोकार लोगों ने गहरा दुख जताया है। देश के लिए इसे बड़ी क्षति बताया है।
(मीडिया में आई खबरों के आधार पर प्रस्तुति)

संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों की बीच प्रोफेसर इम्तियाज अहमद की किताबें काफी लोकप्रिय है।  भारत  की समग्र संस्कृति पर प्रकाश डालने वाले उनके लेखन को दुनियाभर में सराहा गया।

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