बाल कविता बाल वाटिका

बच्चों, अब तुमको बनना है कवि

सांवर अग्रवाल II

‘का’ से काम ‘ख’ से खरगोश,
बच्चों में अब आया जोश,
‘गा’ से गाय इसके बाद घोड़ा,
हमने अब चैप्टर मोड़ा।

‘च’ से चम्मच ‘छ’ से छवि,
तुमको अब बनना है कवि,
‘जा’ से जामुन ‘झ’ से झरना,
बड़े होकर अच्छा बनना।

‘ता’ से ताली ‘था’ से थाली,
देखो आ गया अब माली,
‘द’ से दर्पण ‘धा’ से धारा,
ये देखो गंगा का किनारा।

‘प’ से पढ़ाई ‘फा’ से फागुन,
आओ खिलाएं मीठे जामुन,
‘ब’ से बंदर ‘भ’ से भारत,
बच्चों नहीं करना कभी शरारत।

2
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सब बच्चे मन के सच्चे

ये प्यारे प्यारे बच्चे,
मन के कितने सच्चे,
जब मिलते कहते अंकल,
मन हो जाता ट्विंकल ट्विंकल।

हमको पार्क घुमाते,
रास्ता हमें बतलाते,
नन्हीं-नन्हीं उंगलियों से,
ये हमको खूब लुभाते।

मेरी टूटी फूटी अंग्रेजी को,
ये कहते, यू नो लिटिल लिटिल,
हम कहते सिखाओ हमें,
झटपट ट्यूटर बन जाते।

आज मजा हमको बहुत आया,
बच्चों ने संग हमको खिलाया,
छुपम छुपाई, पोसम पा भई पोसम्पा,
खुद हंसे हमको भी हंसाया

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