अश्रुत पूर्वा II
नई दिल्ली। भारत में कथा वाचन की परंपरा बरसों पुरानी है। दादी-नानी से कहानियां सुनते हुए हम सब बड़े हुए हैं। दिल्ली में और देश के अन्य राज्यों में दास्तानगोई के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं। संस्कृत नाट्यशास्त्र की बात करें तो वहां जिस सूत्रधार का जिक्र मिलता है, वह भी कहानी ही सुनाता है। उर्दू में भी यही हाल है। राजस्थान में कहन की परंपरा है। वहीं राजाओं के दरबार में भांड किस्से कहानियां ही सुनाते थे। महाभारत के दौरान संजय ने अठारह दिन तक सुबह से लेकर शाम तक धृतराष्ट्र को युद्ध कथा सुनाई थी।
मगर समय के के साथ दौर बदला। लोग कहानियों के बजाय पुस्तकें पढ़ने और रेडियो सुनने में दिलचस्पी लेने लगे। इसके बाद टीवी चैनलों और फिल्मों ने कथा वाचन को एक नया ही रूप दिया। जब चाहे सुन लीजिए। देख लीजिए। आलम यह कि अच्छी और प्रेरक कहानियां वहां से भी विदा हो रही हैं। धीरे-धीरे कथा वाचन की परंपरा धूमिल हो गई। बच्चे हों या किशोर या फिर युवा कोई कहानी सुनना नहीं चाहता। वह देखना चाहता है।
कथा वाचन परंपरा को पुनर्जीवित करना अगर मुश्किल है, तो नामुमकिन नहीं। इस दिशा में साहित्य प्रेमियों के लिए अभिनव पहल की है दिल्ली के संदर्भ पुस्तकालय और सांस्कृतिक केंद्र ने। बता दें कि अपनी कथा उत्सव पहल के जरिए ‘समय यान’ नाम का यह केंद्र कहानियां सुनाने की लुप्त हो रही परंपरा को संरक्षित करने की दिशा में यह काम कर रहा है।
‘समय यान’ कहानियां सुनाने में रुचि लेने वालों को तलाशने का भी काम कर रहा है। खबरों के मुताबिक असरदार तरीके कहानियां सुनाने में जिन लोगों की दिलचस्पी है वे कथा उत्सव से संपर्क कर सकते हैं। इसके लिए उम्र की कोई सीमा नहीं रखी गई है।