अश्रुत पूर्वा II
नई दिल्ली। शिक्षाविद और रंगकर्मी अशोक तिवारी की पुस्तक ‘समकालीन हिंदी कविता और सांप्रदायिकता’ का पिछले दिनों लोकार्पण किया गया। दिल्ली स्थित सुरजीत भवन सभागार में आयोजित एक कार्यक्रम में लेखक तिवारी ने कहा कि समकालीन हिंदी कविता संप्रदायिकता के खिलाफ सभी स्वरों को समाहित करने की उनकी कोशिश रही।
इस मौके पर नमिता सिंह ने कहा कि यह किताब एक अहम काम के रूप में हम सबके सामने आई है। लेखक ने सांप्रदायिकता की समस्या को ऐतिहासिक संदर्भ में तलाशते हुए इस पर विचार किया है।
शायर गौहर रजा ने इस अवसर पर कहा कि अशोक तिवारी की यह किताब बेहद प्रासंगिक है। वहीं हरियश राय ने कहा कि अशोक तिवारी भारतीय संस्कृति के उदार सहिष्णु और समावेशी रूप को सामने रखते हुए सांप्रदायिकता को खारिज कर देते हैं। और वे उन कविताओं की शिनाख्त करते हैं जहां सांप्रदायिकता का प्रबल विरोध है।
सैयद परवेज ने कहा कि यह किताब सांप्रदायिकता की तह में जाती है और उसकी पड़ताल करती है। इस कार्यकरम का संचालन परवेज ने किया।