धरोहर

पेशवाओं की विरासत आज भी कायम है गंगा किनारे बिठूर में

पूजा त्रिपाठी II

कानपुर से लगभग 27 किलोमीटर गंगा नदी के तट पर स्थित बिठूर ऐतिहासिक और पौराणिक महत्त्व का शहर है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति की शुरुआत 1857 में यहीं से हुई थी। पेशवा बाजी राव प्रथम ने मराठा साम्राज्य की नई राजधानी के रूप में बिठूर की स्थापना की थी। बिठूर को अपनी राजधानी बनाने के बाद बाजीराव प्रथम ने एक भव्य महल का निर्माण कराया, जिसे आज बिठूर का किला के नाम से जाना जाता है।
ऐतिहासिक तथ्यों को समेटे हुए बिठूर उस समय कला, संस्कृति और व्यापार का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। पेशवा साम्राज्य द्वारा बनाए गए खूबसूरत मंदिरों, महलों और बगीचों के कारण बिठूर आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। पेशवा साम्राज्य ने सड़कों और नहरों का पूरे क्षेत्र में जाल बिछा दिया था। इसने बिठूर के मराठा साम्राज्य को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ने में अहम भूमिका अदा की। आज भी बहुत ही रमणीय है बिठूर और उसके आसपास का क्षेत्र।
यह भी सत्य है कि मराठा शक्ति का गढ़ बिठूर का अस्तित्व ज्यादा समय तक कायम न रह सका। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने दिल्ली की लड़ाई में बिठूर के मराठा साम्राज्य को हरा कर अंग्रेजों ने इसे अपने अधीन कर लिया। पेशवाओं का बनाया हुआ भव्य महल छिन्न भिन्न कर दिया। इससे शहर का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर आ गया। लेकिन पेशवाओं की विरासत आज भी कायम है। भव्य महल के खंडहर इसके वैभव के दिनों की याद दिलाते हैं।
पेशवा साम्राज्य की राजधानी बिठूर पहाड़ी पर बसी हुई है। महल तक पहुंचने के लिए नाना पेशवा द्वारा सीढ़ियां बनवाई गई थी। इन सीढ़ियों को स्थानीय भाषा में ‘स्वर्ग नशेनी’ कहा जाता है। कहते हैं कि यहीं से स्वर्ग जाने का रास्ता शुरू होता था। ऊपर पहुंच कर पूरे बिठूर और उसके आसपास का सुंदर नजारा देखा जा सकता है। बिठूर की धरती जहां झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का बचपन बीता। ये वो धरती है जहां की गहराई में दफन है सैंकड़ों स्त्रियों का अस्मिता की रक्षार्थ दिया गया बलिदान। यहां की मिट्टी आज भी इन रणबांकुरों की शौर्यगाथा सुनाती है।
स्थानी निवासी बताते हैं कि ‘नाना साहब स्मारक’ नामक उद्यान में बरगद के पुराने पेड़ हैं जिन पर कानपुर की घेराबंदी के बाद ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा सामूहिक फांसी के दौरान बिठूर के निवासियों जिंदा ही उल्टा लटका दिया गया था। उन ऐतिहासिक पेड़ों को अंग्रेजों के विरुद्ध बिठूर के लोगों के संघर्ष के साक्षी के रूप में राज्य सरकार ने संरक्षित किया है। कहते हैं अंग्रेजों द्वारा किए सामूहिक नरसंहार से यहां की धरती लाल हो गई थी। किले के मार्ग के आसपास सजी हुई दुकानें और मराठा साम्राज्य के अवशेष की झलक आज भी यहां आने पर सहसा ही ध्यान अपनी ओर खींच लेती है। इसकी कला दीर्घा में शाही आदेश, सिक्के, डाक टिकट और अन्य प्राचीन वस्तुओं समेत ऐतिहासिक अवशेष संग्रह किए गए हैं। संग्रहालय में नाना साहेब, रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की प्रतिमाएं भी हैं।

प्रमुख दर्शनीय स्थल
मराठा साम्राजय की कहानी बयां करता बिठूर का किला आज नानाजी पेशवा का स्मारक है। यह प्राचीन स्मारक बेहद खूबसूरत है।
ब्रह्मावर्त घाट : अध्यात्म में रुचि रखने वालों के लिए ब्रह्मावर्त घाट का खास महत्तव है। कहते हैं कि यहीं पर ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना से पूर्व तपस्या की थी। यहीं पर ध्रुव टीला नामक जगह है जहां ध्रुव ने भगवान नारायण को प्रसन्न करने के लिए एक पैर पर खड़े होकर कठोर तप किया था। इसे आज ध्रुव टीला के नाम से जाना जाता है। कहते हैं इसी स्थान पर महर्षि वाल्मीकि ने महाकाव्य रामायण की रचना की।
पाथर घाट : गंगा नदी के तट पर लाल पत्थर से बना अवधी निर्माण कला का प्रतीक।
वाल्मीकि आश्रम : जहां बैठ कर बाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी। कहते हैं इसी आश्रम में सीता ने लव-कुश नाम के दो बेटों को जन्म दिया था। (फोटो: साभार)

About the author

पूजा त्रिपाठी

पूजा त्रिपाठी सीएसजेएम विश्वविद्यालय कानपुर में एम.ए. की छात्रा हैं और साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहीं हैं । पूजा इन दिनों स्वतंत्र लेखन कर रहीं हैं ।

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