सांत्वना श्रीकांत II
मेरा अनंत होना
उतना ही जरूरी था
जितना कि
सबसे पवित्र किए गए
प्रेम को संजो लेना।
दोहराया नहीं जा सकता
उस पवित्र प्रेम की श्रेष्ठता को,
न ही उसकी मासूमियत को
जो नवांकुर से फूटी
कोपलों की तरह थीं।
सभ्यताओं को
अपने विकास के लिए
आवश्यक है प्रेम।
ये जो घुटन है हवाओं में,
उसे प्रेम की शुद्धता ही
शुद्ध कर सकती है।
मेरा अनंत होना
उतना ही जरूरी था,
जितना कि तुम्हें
मेरे शरीर से बढ़ कर
मेरी अग्नियों में
खुद को समर्पित कर
पंच तत्व हो जाना।
मेरा अनंत होना
उतना ही जरूरी है
जितना कि-
ब्रह्मांड काअंत होते समय
बचा रहे सत्य
प्रेम के होने का।