कविता काव्य कौमुदी

मेरा अनंत होना

सांत्वना श्रीकांत II

मेरा अनंत होना
उतना ही जरूरी था
जितना कि
सबसे पवित्र किए गए
प्रेम को संजो लेना।
दोहराया नहीं जा सकता
उस पवित्र प्रेम की श्रेष्ठता को,
न ही उसकी मासूमियत को
जो नवांकुर से फूटी
कोपलों की तरह थीं।
सभ्यताओं को
अपने विकास के लिए
आवश्यक है प्रेम।
ये जो घुटन है हवाओं में,
उसे प्रेम की शुद्धता ही
शुद्ध कर सकती है।
मेरा अनंत होना
उतना ही जरूरी था,
जितना कि तुम्हें
मेरे शरीर से बढ़ कर
मेरी अग्नियों में
खुद को समर्पित कर
पंच तत्व हो जाना।
मेरा अनंत होना
उतना ही जरूरी है
जितना कि-
ब्रह्मांड काअंत होते समय
बचा रहे सत्य
प्रेम के होने का।

About the author

santwana

सशक्त नारी चेतना के स्वर अपनी कविताओं में मुखरित करने वाली डाॅ सांत्वना श्रीकांत का जन्म जून1990 में म.प्र. में हुआ है।सांत्वना श्रीकांत पेशे से एक दंत चिकित्सक हैं। इनका प्रथम काव्य-संग्रह 'स्त्री का पुरुषार्थ' नारी सामर्थ्य का क्रान्तिघोष है।

इनकी कविताएँ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं- गगनांचल, दैनिक भास्कर,जनसत्ता आदि में प्रकाशित होती रहती हैं।

साथ ही वे ashrutpurva.com जो कि साहित्य एवं जीवनकौशल से जुड़े विषयों को एक रचनात्मक मंच प्रदान करता है, की संस्थापिका एवं संचालिका हैं।

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