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भाषा और संस्कति को सहेज कर रखना हम सबका दायित्व : राष्ट्रपति मुर्मु

 अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। भाषा और संस्कृति का संरक्षण करना और उन्हें सहेज कर रखना हम सभी का दायित्व है। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज और लोकाचार को सुरक्षित रखते हुए जनजातीय समुदाय के युवा आधुनिक विकास में भागीदार बनें। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने पिछले दिनों भोपाल में कही। वे भारत की लोक एवं जनजाति अभिव्यक्तियों के राष्ट्रीय उत्सव ‘उत्कर्ष’ और ‘उन्मेष’ के शुभारंभ के मौके पर संबोधित कर रही थीं।
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि राष्ट्र प्रेम और विश्व बंधुत्व के आदर्श का चिंतन हमारी धाराओं में हमेशा दिखाई देती है। उन्होंने कहा कि साहित्य मानवता का आईना है। यह मानवता को बचाता है। आगे बढ़ाता भी है। साहित्य और कला करुणा तथा संवेदनशीलता को बचाती है। राष्ट्रपति ने कहा कि दुनिया गंभीर चुनौतियों से गुजर रही है। अलग-अलग संस्कृतियों में आपसी समझ विकसित करने में कला और साहित्य का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
राष्ट्रपति ने कहा कि साहित्य वैश्विक समुदाय को शक्ति देता है। यह आपस में जुड़ता है तो जोड़ता भी है। साहित्य की श्रेष्ठता से हर व्यक्ति परिचित भी है। आजादी के अमृत महोत्सव के ऐतिहासिक पड़ाव पर हमें यह विचार करना है कि क्या इस समय साहित्य का ऐसा उन्मेष देख रहे हैं जिनमें बड़ी संख्या में पाठक की भागीदारी हो। उन्होंने कहा कि भारतीयता के गौरव पर जोर देने वाले रचनाकारों की इतनी विशाल परंपरा विकसित हुई है है कि एक संबोधन में सबका जिक्र करना असंभव है।
कार्यक्रम में मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी उपस्थित थे। चौहान ने इस मौके पर कहा कि ऐसे आयोजन सारी दुनिया को एकत्र करने में समर्थ होते हैं। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश साहित्यकारों और कलाकारों की भूमि है। इस मौके पर साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक, संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष संध्या पुरेचा और संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव उमा नंदूरी ने कार्यक्रम संबंधी जानकारी दी।

आपसी समझ विकसित करने में कला और साहित्य का बड़ा योगदान

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