बाल कविता बाल वाटिका

बरखा रानी से बाल मनुहार

सांवर अग्रवाल II

बरखा रानी बरखा रानी,
लगती हो तुम बड़ी सयानी,
आसमान से तुम आती,
चेहरे सबके खिला जाती।

दो दिनों से तो यहां,
सूरज देवता दहक रहे थे,
हाल बच्चों का बहुत बुरा था,
पढ़ने से भी भाग रहे थे।

बादलों की गड़गड़ाहट जब,
बच्चों को सुनाई दी,
गर्मी से कुम्हलाए बच्चों ने,
फिर तुम्हारी अगवानी की।

अब जब तुम आ गई हो,
हम बच्चे नाव बनाएंगे,
तुमको गले लगा कर हम तो,
कागज की नाव तैराएंगे।

पिंकी की नाव नीली है,
मीना हरी ले आई,
ममता के पास लाल है,
ऋतु का हाल बेहाल है।

सब बच्चों ने फिर मिल कर,
ऋतु की नाव बनाई है,
हंसी खुशी सबको गाते देख,
बरखा रानी मुस्कराई है।

About the author

सांवर अग्रवाल

सांवर अग्रवाल कपड़े के कारोबारी हैं। असम के तिनसुकिया में वे रहते हैं। दो दिसंबर 1965 को जन्मे अग्रवाल स्वभाव से मृदुल और कर्म से रचनात्मक हैं। बातों बातों में अपनी तुकबंदियों से वे पाठकों और श्रोताओं को चकित कर देते हैं। वे लंबे समय से बाल कविताएं रच रहे हैं। सांवर अग्रवाल बाल कवि के रूप में चर्चित हैं।

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